हरियाणा सर्वखाप पंचायत का इतिहास

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सर्वखाप पंचायत का इतिहास – हरियाणा सर्वखाप पंचायत की स्थापना वि. सं. 664 में की गयी थी। आरम्भ में इस संगठन का नाम यौधेय संगठन था, जिसका बाद में नाम बदलकर सर्वखाप पंचायत और आगे चलकर इसका नाम हरियाणा सर्वखाप पंचायत हुआ।

हरियाणा सर्वखाप पंचायत का इतिहास

इसका मुख्यालय मुजफ्फरनगर का शौरम गांव रहा है। और इसी गांव से इस संगठन का मंत्री बनता आया है। सर्वखाप पंचायत के सामाजिक दायित्व का दायरा अत्यंत ही विस्तृत था। यह पंचायत सभी जातियों के सामाजिक और पारिवारिक झगड़ों से लेकर बाहरी ताकतों से क्षेत्र की जनता की रक्षा का महत्वपूर्ण कार्य करती थी। सर्वखाप पंचायत के पास हजारों की संख्या में मल्ल रहते थे। इन मल्लों ने अनेकों अवसरों पर सर्वखाप पंचायत के मान-सम्मान और स्वाभीमान की रक्षा की थी। विक्रमी संवत 1249 में मुहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने सौरम गांव पर हमला किया तो इन योद्धाओं ने ऐबक का डटकर मुकाबला किया था।

हरियाणा सर्वखाप पंचायत के महामंत्री

हरियाणा सर्वखाप पंचायत के उद्गम से लेकर वर्तमान लेकर अब तक कुल 25 महामंत्री हुए हैं। प्रथम महामंत्री राव राम राणा थे और वर्तमान महामंत्री सुभाष चौधरी हैं। हुमायूं के समय सर्वखाप पंचायत के महामंत्री का कहीं उल्लेख नहीं मिलता। सर्वखाप पंचायत के अध्यक्ष देश के कई भागों से आये थे, किंतु महामंत्री सौरम गांव के बालियान गोत्रीय ही रहे हैं। सर्वखाप पंचायत के सभी महामंत्री परंपरागत तरीके से एक ही परिवार से चुने जाते रहे हैं।

सर्वखाप पंचायत के सभी महामंत्रियों का कार्यकाल सहित विवरण

1. राव राम राणा (11 वर्ष),

2. प्रेमराम (4 वर्ष),

3. राव राम राणा द्वितीय, (31 वर्ष),

4. राव हरिश्चंद्र (37 वर्ष),

5. राव रणमल्ल राणा (26 वर्ष),

6. राव मूलचंद (6 वर्ष),

7. राव दूल्हे चंद (31 वर्ष),

8. राव देवीचंद राणा (38 वर्ष),

9. राव कृष्ण चंद (28 वर्ष),

10 राव राम राणा तृतीय (13 वर्ष).

11. चौ. पच्चूमल (75 वर्ष),

12. चौ. मानचंद (22 वर्ष),

13. चौ. जादों राम (31 वर्ष),

14. राव हरी राम (12 वर्ष),

15. चौ. टेकचंद (42 वर्ष),

16. चौ. किशन राम (8 वर्ष),

17. चौ. श्योलाल (34 वर्ष),

18. चौ. गुलाब सिंह (52 वर्ष),

19. चौ. सूरजमल (31 वर्ष),

20. चौ. खुशीराम (21 वर्ष),

21. चौ. सावंत सिंह (37 वर्ष),

22. चौ. मूलचंद (30 वर्ष),

23. चौ. कबूल सिंह (67 वर्ष),

24. चौ. फेरू सिह (10 वर्ष),

25. चौ. सुभाष चौधरी वर्तमान महामंत्री।

उपरोक्त महामंत्रियों में बाबर के काल में हुए राव राम राणा तृतीय, अकबर के काल में हुए चौ. पच्चूमल और महामंत्री चौ. कबूल सिंह अत्यंत ही प्रसिद्ध हुए।

सर्वखाप पंचायत ने 65 हजार योद्धा बलबन की सहायता के लिए भेजे

सर्वखाप पंचायत का इतिहास नामक इतिहास पुस्तक के लेखक कबूल सिंह के अनुसार विक्रमी संवत 1323 में दिल्ली के बादशाह सुलतान बलबन ने इस गांव में अपने दरबारी विद्वान अमीर खुसरो को सर्वखाप पंचायत के पास अपना संदेश लेकर भेजा था। उसके कहने पर सर्वखाप पंचायत ने 65 हजार योद्धा बलबन की सहायत के लिए भेजे थे, जिन्होंने बादशाह की सेना के साथ मिलकर विदेशी आक्रांताओं के विरुद्ध युद्ध किया था। संवत 1455 वि. में तैमूर द्वारा भारत पर आक्रमण करने पर हरियाणा सर्वखाप पंचायत के 80 हजार मल्लों और 20 हजार युवकों और 10 हजार स्त्रियों ने तैमूर की सेना का डटकर मुकाबला किया था। सर्वखाप पंचायत के 95 वर्षीय मंत्री चौ. राव धर्मपाल ने रात-दिन एक कर पूरे हरियाणा से योद्धाओं को एकत्र किया था।

बादशाह इब्राहिम लोदी शौरम गांव में

बादशाह इब्राहिम लोदी  तत्कालीन सर्वखाप पंचायत मंत्री राव कृष्ण चन्द्र राणा का बहुत सम्मान करता था। उसने उनकी प्रशंसा करते हुए लिखा था-‘राव कृष्ण चन्द्र राणा अपने जमाने के उन खुदा के नेक बन्दों में से हैं जिन्होंने अपनी जिन्दगी को खल्के खुदा की खिदमत में लगाकर अल्लाह की इबादत की है। मैं काश्तकारों के बारे में जो मालूमात करता हूं, उसमें इनके मुकाबिले की कोई राय नहीं देता है। मैं इनके मशविरे को सबसे अव्वल समझता हूं और इनकी खाप बालियान को रेशम जैसी नर्म खयालात का खिताब अदा करता हूं और शोरम गांव को हिन्दू-मुसलमानों के नेक खयालों का केन्द्र मानता हूं। यहाँ पर हर मजहब और हर कौम के लोगों के अंदर इन्साफ का जज़्बा है। यह गांव जमाने कदीम से पंचायत का हामी रहा है। इस गांव में पैदा होने वाले लोगों ने बादशाह के दरबारों में वो पंच फैसले करके नाम पाया है कि जिनकी मिसाल मिलना कठिन है। मेरे ख्याल से शोरम के जाट इतने न्यायकारी हैं कि खुदा को हाजिर नाजिर समझकर सच्चाई और ईमान के साथ फैसले करते हैं।…सारे इलाके की पंचायत का यह गांव सदर मुकाम है। हमें भी इस गांव की सैर करने और जमीन देखने का मौका मिला। हम हजरत शाह गरीब बादशाह के जश्न के वास्ते शोरम गांव में आये हैं।’

बादशाह इब्राहिम लोदी के आलेख से यह स्पष्ट होता है कि उस काल में जाट अपने नाम के साथ ‘राव’ उपाधि का प्रयोग करते थे।

बादशाह बाबर शौरम गांव में

अब्बासी खलीफाओं के कुल में और बगदाद नगर में पैदा हुए  सूफी सन्त हजरत गरीब शाह सन् 1510 में शोरम में आकर रहने लगे थे। ये इतने प्रसिद्ध संत हुए कि दूर-दूर से अनेकों बादशाह और बड़े-बड़े अधिकारी उनके दर्शन करने के लिए इस गांव में आया करते थे। सन् 1551 में उनकी मृत्यु के सात वर्ष बाद बादशाह बाबर उनकी कब्र पर श्रद्धा पुष्प अर्पित करने आया था। उसने शोरम गांव की यात्रा के वृतांत में लिखा था –

‘यहां जाटों की खापों के चौधरी मुझसे आकर मिले। शोरम के चौधरी रामराय ने इसका इंतजाम किया था। मैंने जाटों को देखा। जाट कौम निहायत ही ईमानदार और पाकीजा ख्याल है। इनके अखलाक बहुत ही ऊंचे हैं। ये लोग हकपरस्त हैं। हरयाणा देश में शोरम गांव बड़ा अच्छा गांव है। इस गांव में हिंदु मुसलमान मेलजोल से रहते हैं।…मैंने सर्वखाप पंचायत हरयाणा के लोगों की पंचायत के पंचों को देखा था। जो सच्चे इन्साफपरस्त और अपने कोल फैल के पाबन्द हैं। हरयाणा सर्वखाप पंचायत के मल्ल योद्धा और पंचायतों के पंच मुल्क हिंद की सब से बड़ी शख्सियत हैं। इस वास्ते मैं बालियान खाप के गांव शोरम के वजीरों का और हरयाणा की खापों के पंचों का शुक्रगुजार हूं और शोरम के चौधरी को एक रुपया इज्जत का और एक सौ पच्चीस रुपये पगड़ी के भेंट जिंदगी भर देता रहूंगा।’
सर्वखाप पंचायत के पंच मंडल के एक सदस्य चौधरी नाथाराम ने बादशाह अकबर के दो पुत्रों को आरम्भिक शिक्षा दी थी। अकबर, जहांगीर व शाहजहां ने सर्वखाप पंचायत के महत्व को स्वीकार किया था।