जाट नायक शैलेन्द्र चौधरी – मान युग में समाज हित में चिन्तन करने वाले व समाज को अपने सद्कर्माें से नयी दिशा देने या समाज हित में चिन्तन-मनन करने वाले लोग विरले ही मिलते हैं। क्योंकि प्रायः लोग अपने स्वार्थों के दायरे में कैद रहते हैं और ‘स्व’ का निर्माण करने में ही अपना पूरा जीवन बिता देते हैं। किन्तु जो व्यक्ति समाज हित के सम्मुख अपने हितों को गौण मान लेते हैं, और जो समाज हित में चिन्तन-मनन को प्राथमिकता देते हैं, वे ही होते हैं समाज के असली नायक। आईये हम आज आपको ऐसे व्यक्तित्व से रूबरू कराते हैं जो वास्तव में जाट समाज का नायक है, जिसने सरकारी सेवा में उच्च अधिकारी के रूप में न्याय की रक्षार्थ न केवल बार-बार अपने प्राणों को ही संकट मेें डाला, अपितु जिसने अपने साहसिक कार्यों से वंचित समाज को न्याय दिलाने में महती भूमिका अदा करने के साथ ही जाट समाज के हितों की रक्षा की और स्व के विकास को नहीं समाज के विकास को वरीयता दी।
हम जिस विशिष्ट व्यक्तित्व की बात कर रहे हैं, उनका नाम है शैलेन्द्र चौधरी।
शैलेन्द्र चौधारी जाट समाज के सच्चे नायक हैं, ऐसे नायक जो सदा अपने सद्कृत्यों से नये इतिहास की रचना करते हैं। शैलेन्द्र चौधारी ने शासन में उच्च पदों पर रहते हुए भी भरसक जाट समाज की अभिवृद्धि और उन्नति के लिए हृदय से विधि सम्मत प्रयास किये। उन्होंने उत्तर प्रदेश में जाट आरक्षण हेतु चलाये गये सभी अभियानों में आगे बढ़कर कार्य किया और इस अभियान को सफ़लता तक पहुंचाने में प्राणप्रण से प्रयास किया। उन्होंने जाट समाज की प्रख्यात् सामाजिक संस्था ग्रामीण अधिकारी कल्याण परिषद् व चौ. चरण सिंह विचार मंच के माध्यम से जाट समाज की जो सेवा की है, वह अप्रतिम है। उनके द्वारा जाट समाज की उन्नति हेतु किये गये प्रयासों के कारण उनको जाट नायक का दर्जा दिया गया है।
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ईमानदारी की प्रतिमूर्ति जाट नायक शैलेन्द्र सिंह के पिता चौ- कर्ण सिंह
जाट नायक शैलेन्द्र चौधारी का जन्म प. उत्तर प्रदेश के जनपद मुजफ्फ़रनगर के गांव भौंरा कलां के चौ. कर्ण सिंह के घर में हुआ था। बालियान गोत्रीय चौ. कर्ण सिंह के पिता चौ. भरत सिंह क्षेत्र के प्रसिद्ध पहलवान रहे थे। चौ. भरत सिंह के कारण इस घराने का क्षेत्र में बहुत ही सम्मान था। चौ. भरत सिंह के पुत्र चौ. कर्ण सिंह भी अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के चलते क्षेत्र भर में प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपनी सन्तानों को सदाचार, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा व अपने समाज की अन्तिम सांस तक सेवा करने का पाठ पढ़ाया था। श्री कर्ण सिंह ने बड़ौत कालेज से बीएससी तक शिक्षा प्राप्त कर गन्ना विभाग मेें रहकर ईमानदारी के साथ सारी उम्र किसानाेंं की सेवा की। उनकी ईमानदारी का प्रमाण है कि उन्होंने चुंगी और मार्केंटिंग विभाग जैसे कमाऊ विभागों में सरकारी सेवा आरम्भ की थी, किन्तु वहां पर रिश्वत का बोलबाला देख, उन्होंने दोनों जगह से त्यागपत्र दे दिया था। चौ. कर्ण सिंह 6 फ़ुट ऊंचा था, जबकि उनकी पत्नी श्रीमती महेन्द्र कौर का कद मात्र पांच फ़ुट था। कद की दृष्टि से यह जोड़ी असामान्य थी, किन्तु पति-पत्नी में इस पर कभी भी विवाद नहीं हुआ।
माता पिता से मिला चौधरी शैलेन्द्र सिंह को संस्कार का अंकुर
चौ. कर्ण सिंह दम्पत्ति में आपसी सौहार्द तथा तारतम्य अनुकरणीय था। दोनों पति-पत्नी उच्च संस्कारों से ओतप्रोत थे। इस दम्पत्ति ने अपनी सन्तानों में भी इन ही संस्कारों को रोपने का भरसक प्रयास किया और परिणामस्वरूप उनकी सन्तानों में भी उच्च संस्कारों का बीजारोपण हो सका।
इस दम्पत्ति के शैलेन्द्र चौधारी के अतिरिक्त दो पुत्र सुनील चौधारी और धर्मेन्द्र चौधरी हैं। शैलेन्द्र चौधारी की मुख्य शिक्षा सैनिक स्कूल लखनऊ और मुजफ्फ़रनगर में हुई। शैलेन्द्र चौधरी प्रतिभा सम्पन्न छात्र और बहुत होनहार खिलाड़ी थे। उनको छात्र जीवन में मुख्य मंत्री, प्रदेश के राज्यपाल व जिलाधिाकारी के हाथाें सम्मानित होने का अवसर मिला था।
उच्च अधिकारी के रूप में शैलेन्द्र सिंह का कर्तव्य निर्वहन
लेक्चरर के रूप में शैलेन्द्र सिंह
पोस्ट ग्रेजुएशन तक शिक्षा प्राप्त करने के तुरन्त बाद शैलेन्द्र चौधारी की नियुक्ति मुजफ्फ़रनगर में लेक्चरर के पद पर हुई। लेकिन उनका लक्ष्य लैक्चरार बनना नहीं था। वह आरम्भ से ही उच्च शासकीय अधिाकारी बनना चाहते थे। इसलिए लैक्चरार जैसी सम्मानित नौकरी पाने के बाद भी उनके कदम रुके नहीं और अपने लक्ष्य को पाने के प्रयास में वह आगे बढ़ते रहे। उन्होंने पांच वर्ष तक विभिन्न विद्यालयों में अध्यापन कार्य किया। अध्यापन कार्य के साथ शैलन्द्र चौधारी अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए गहन अध्ययन में लीन रहे।
पीसीएस परीक्षा में टॉप 10 में शैलेन्द्र चौधरी
अन्ततः शैलेन्द्र चौधरी का प्रयास रंग लाया और वे उत्तर प्रदेश सिविल परीक्षा के माध्यम से पीसीएस चुने जाने में सफ़ल हुए। वह इस परीक्षा में टॉप 10 अभ्यर्थियों की सूची में अपना स्थान बनाने में सफ़ल रहे थे। शैलेन्द्र चौधरी यद्यपि आईएएस बनने के प्रयास में थे, किन्तु उनको गम्भीर बीमारी से ग्रस्त अपनी मां की सेवा में अधिक समय देने के कारण सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा को छोड़ देना पड़ा।
पीसीएस अधिाकारी चुने जाने पर शैलेन्द्र चौधरी ने ईमानदारी की प्रतिमूर्ति पिता चौ. कर्ण सिंह और माता श्रीमती महेन्द्र कौर द्वारा दिये गये संस्कारों का यथा योग्य पालन करते हुए मानव मात्र की भरसक सेवा का संकल्प लिया।
डिप्टी कलेक्टर के रूप में शैलेन्द्र चौधरी
शैलेन्द्र चौधरी को पीसीएस ज्वायन करते ही पौड़ी गढ़वाल में डिप्टी कलेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने इस पद पर रहते हुए पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ अपने कर्तव्य का निर्वहन किया कि जब पौड़ी गढ़वाल में पटवारियों की भर्ती प्रक्रिया चली, तो उस अभियान का प्रमुख शैलेन्द्र चौधरी को बनाया गया। शैलेन्द्र चौधरी ने इस भर्ती प्रक्रिया को पूरी ईमानदारी व पारदर्शिता के साथ पूरा किया। शैलेन्द्र चौधरी द्वारा इस पूरी भर्ती प्रक्रिया को जिस पारदर्शिता के साथ सम्पन्न किया गया, उसका स्थानीय स्तर से लेकर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक सराहा गया।
विभिन्न प्रशासनिक पदों पर नियुक्त रहे शैलेन्द्र चौधरी
शैलेन्द्र चौधरी अपने जीवन में अनेकों नगरों में विभिन्न प्रशासनिक पदों पर नियुक्त रहे। उन्हें चुनावों को निष्पक्ष तरीके से और निर्विवाद रूप से सम्पन्न कराने में महारथ हासिल रही। उनकी इस प्रखर मेधा से सभी उच्च अधिाकारी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते थे। जिन स्थानों पर बूथ कैप्चरिंग की घटनाओं की आशंका होती थी, वहां शैलेन्द्र चौधरी को ही नियुक्त किया जाता था। शैलेन्द्र चौधरी बूथ कैप्चरिंग करने वाले अपराधियों और उनके आकाओं यह तक कि बूथ कैप्चरिंग को संरक्षण देने वाले सांसदों तक को भी उनकी औकात बता देने से पीछे नहीं हटते थे। शैलेन्द्र चौधरी ने वर्ष 1984 में एस. डी. एम. के रूप में शासकीय सेवा आरम्भ की और 32 वर्ष सेवा बरने के बाद वह दिसम्बर 2016 में सेवा निवृत्त हुए। उन्होंने पौड़ी गढ़वाल के डिप्टी कलेक्टर के रूप में अपनी सेवा की पारी आरम्भ की थी। तत्पश्चात् वे इसी पद पर सहारनपुर में नियुक्त रहे। वह सहारनपुर, मेरठ, मुरादाबाद, ठाकुरद्वारा, ललितपुर और बागपत में एस डी एम रहे। वह नव सृजित जनपद बागपत के प्रथम ए डी एम थे।
शैलेन्द्र चौधरी मेरठ में सिटी मजिस्ट्रेट, अपर नगर आयुक्त और मेरठ विकास प्राधिाकरण में ज्वायंट सेक्रेटरी रहे।
शैलेन्द्र चौधरी वर्ष 1998 में मथुरा विकास प्राधिाकरण के सचिव नियुक्त हुए। इसके बाद वह मेरठ विकास प्राधिाकरण में सचिव नियुक्त हुए। तत्पश्चात् आप ग्रेटर नोयडा विकास प्राधिाकरण में डिप्टी चीफ़ एक्जीक्यूटिव ऑफ़ीसर और इसके बाद आजमगढ़ में अपर आयुक्त नियुक्त हुए। आप दो वर्ष तक आगरा में आर एफ़ सी और तत्पश्चात् नगर आयुक्त रहे। आप अपने सेवा काल के अन्तिम लगभग पांच वर्ष बुलन्दशहर-खुर्जा विकास प्राधिााकरण के उपाधायक्ष रहे और दिसम्बर 2016 में आप इसी पद से सेवा निवृत्त हुए।
अधिकारी के रूप में अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार रहे शैलेन्द्र चौधरी
शैलेन्द्र चौधरी ने अपने सेवाकाल में जितना गरीबों, मजलूमों और बेसहारों को आलम्ब दिया, उतना कोई-कोई अधिकारी ही कर पाता है। वह जहां भी एसडीएम रहे, गरीबों को घर बनाने के लिए प्राथमिकता पर भूखण्ड आवंटित कियं। उन्होंने श्रमदान के माध्यम से अनेकों गांवों में सड़कें बनवायीं। इसके अतिरिक्त उन्होंने इस पद पर रहते हुए गावों के असंख्य वृद्धजनों की पेंशन बनवायीं। वह गांव-गांव जाकर वृद्धों की पेंशन बनाते थे। शाहजहांपुर में एडीएम फ़ाईनेंस और बरेली में नगर आयुक्त रहते हुए गरीबों और विकलांग नागरिकों को आवासीय भूमि के पट्टे काटकर दिये थे। नगरों में हाऊस टैक्स नहीं देने वालों पर सख्ती कर उनसे हाऊस टैक्स की उगाही की और उस पैसे को उस नगर की सड़कों, नालियों व अन्य आवश्यक विकास कार्याें को पूर्ण कराया। वह जहां भी रहे वहीं भू माफि़याओं के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाते हुए अतिक्रमण की हजारों एकड़ सरकारी जमीनों को कब्जा मुब्त कराया। उन्होंने बरेली में उत्तर प्र्रदेश में पहली बार लगाये गये सॉलिड वेस्ट प्लांट लगाने के लिए भू माफि़याओं द्वारा कब्जा की गयी सैकर्ड़ों हैक्टेयर भूमि को कब्जा मुक्त कराया।
उनके इस कार्य की जनता द्वारा भूरि-भूरि प्रशंसा की गयी थी। वह विकलांगों और गरीबाें के लिए विशेष कैम्प लगाकर उनकी फ़रियाद सुनते थे और यथा शक्ति उनका निवारण करते थे। वह गरीब और मानसिक रोगी कन्याओं की राजकीय सहायता से शादियां भी कराते थे। मानसिक रोगी कन्याओं का उद्धार करने वाले वह प्रान्त के पहले अधिकारी रहे। उन्होंने अपने विवेक से बरेली में मानसिक रोगी कन्याओं के आवास को जो पूरी तरह से खण्डहर हो चुका था, और जहां की संवासिनों का भविष्य खतरे में था, उसे न केवल पूर्ण रूप से सुव्यवस्थित ही किया, अपितु भवन में पानी, बिजली, फ्रिज, कम्बल, टॉयलेट, चाहरदीवारी बनाकर संवासिनों की सुरक्षा सुनिश्चित की। उन्होंने सभी रोगी संवासिनियों का विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम के द्वारा उपचार कराने के बाद उनको उनके परिजनों के पास पहुंचाया।
बरेली और मथुरा में कोढ़ के रोगियों की बहुत बड़ी संख्या थी। शैलेन्द्र चौधरी ने इन सभी कोढ़ियों को आवास, रहन-सहन, उपचार और कम्बल आदि वितरण कर उनको पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने में सहायता दी।
समाज की अग्रिम पंक्ति में शैलेन्द्र चौधरी का परिवार
शैलेन्द्र चौधरी का विवाह जनपद मुरादाबाद (वर्तमान जनपद सम्भल) के गाव सिंहपुर सानी निवासी श्रीमती विपिना देवी से हुआ। शैलेन्द्र चौधरी दम्पत्ति के तीन सन्तानें हैं-दो पुत्रियां एकता चौधरी और मेघा चौधरी और पुत्र शंकुल चौधरी। शैलेन्द्र चौधरी की बड़ी पुत्री एकता चौधरी का विवाह दीपक सिंह, (आईएएस) से हुआ है और उनकी छोटी पुत्री मेघा चौधरी का विवाह पंकज नैन (आईपीएस) से हुआ है। शैलेन्द्र चौधरी का पुत्र शंकुल चौधरी एक मल्टी नेशनल कम्पनी में उच्च पद पर कार्यरत है।
शैलेन्द्र चौधरी का जाट समाज के नाम सन्देश
जाट समाज को दिये अपने सन्देश में शैलेन्द्र चौधरी कहते हैं, ‘‘जाट समाज की विरासत बहुत ही समृद्ध है। जाट समाज सदियों से देशभक्त कौम रही है। हमारे पूर्वजों ने देश और धर्म हित में जितने बलिदान दिये हैं, उतने बलिदान संसार की किसी अन्य कौम ने नहीं दिये हैं। हमें अपनी कौम के गौारवपूर्ण बलिदान की गाथाओं को भूलना नहीं चाहिए और उन सिद्धांतों को जीवित रखना चाहिए, जिनकी रक्षा के लिए हमारे लाखों पूर्वजों ने बलिदान दिये हैं। जाट जाति ईमानदारी की प्रतीक रही है। जाटों के कारण ही समाज में ईमानदारी, शुचिता और न्याय की परम्परा अभी तक जीवित है। हमें अपनी नयी पीढ़ियों में अपने जातिगत गुणों का रोपण करते रहना होगा। हमें विश्वास है कि यदि हम अपने संस्कारों को जीवित रखने में कामयाब हो गये, तो आने वाले समय में जाट जाति देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी।’’