प्रस्तुत है कथाकार वीरेन्द्र सिंह चट्ठा की सच्ची घटना पर आधारित एक सामाजिक कहानी ‘आत्मा का बजट’ यह कहानी आजकल के परिवेश में आये सामाजिक बदलाव को दर्शाती है।
‘देखिये चौधरी साहब मेरा तो यह मानना है कि दहेज तो छाज की फटकन है। असली चीज होती है आने वाली बहू जो घर की लक्ष्मी होती है। अगर वह संस्कारवान होगी, तो वह करोड़ों रुपयों के दहेज से भी कीमती होगी। इसलिए मैं दहेज के विषय में कुछ भी कहना नहीं चाहूंगा। क्योंकि सब जानते हैं कि हर बेटी वाला अपनी बेटी की खुशी के लिए उसकी शादी में अपनी सामर्थ्य से अधिक धन खर्च करने का प्रयास करता है। आप भी इस बात को मानते होंगे।’ रामशरण ने अपने सामने चारपाई पर बैठे अनूप सिंह और खजान सिंह को सम्बोधित करते हुए कहा।
‘जी हां, आपने सही कहा। और जैसा कि मैंने आपसे बताया कि मैं अपनी धेवती के लिए रिश्ता देखने आया हूं। मेरे दामाद की तीन साल हुए केंसर के कारण मौत हो गयी थी। अब मेरी धेवती का बाप और नाना जो कुछ भी हूं मैं ही हूं। मैं अपनी धेवती की शादी में सामर्थ्यनुसार आपकी हर प्रकार से भरसक सेवा करूंगा। मेरा आपसे निवेदन है कि बात आगे बढ़ाने से पहले आप यह बता दें कि यदि आपकी या आपके बच्चों की कोई विशेष मांग तो नही है।’ अनूप सिंह ने अत्यन्त नम्र स्वर में रामशरण से कहा।
‘ना साहब हमारी तो कोई खास मांग नहीं है। जो कुछ है उसके बारे में आपको चौ- खजान सिंह ने बता ही दिया होगा।’ रामशरण ने अपने स्वर में मिश्री जैसी मिठास घोलते हुए कहा।
‘इन्होंने मुझे कुछ इशारा किया तो था, लेकिन अगर आप उस बारे में खुद खुलकर बताएं तो ज्यादा बेहतर रहेगा। मैंने तो आपसे पहले भी कहा था और अब भी कह रहा हूं कि मैं आपकी हर प्रकार से खातिर तवाजो करूंगा। आपको मेरे यहां सदा पूरा सम्मान मिलेगा। रही धेवती की बात, तो वह अति सुन्दर है, एम ए तक पढ़ी लिखी है तथा सुसंस्कारयुक्त है। मेरा विश्वास है कि आप मेरी बेटी में कभी किसी तरह की कमी नहीं खोज सकेंगे। मेरी बेटी के आने से निश्चित रूप से आपके घर में खुशियों की बहार आ जायेगी।’ अनूप सिंह बोले।
‘देखिए चौधरी साहब, मैं आपको साफ बात बताये देता हूं कि मेरा बेटा भले ही 12वीं तक ही पढ़ा लिखा है, पर इस समय वह दिल्ली में अपना बिजनेस कर रहा है। वहां उसका अपना मकान है। आपकी बेटी वहां राज करेगी। अब यह तो सब ही जानते हैं कि जितना गुड़ डाला जाता है उतना ही मीठा होता है।’ रामशरण अब असल मकसद की ओर आते हुए बोला।
अनूप सिंह रामशरण का मन्तव्य समझ रहे थे, लेकिन उन्होंने उसे खुलकर साफ बात कहने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से कहा, ‘देखिए चौधरी रामशरण जी, आपका बेटा 12वीं तक पढ़ा है और मेरी धोवती ने डबल एम ए किया है और वह एजूकेशन में डिप्लोमा भी किये हुए है। वह सुंदर और सुशील है, गौरवर्णीय है और उसका कद पांच फुट चार इंच है। हर मामले में हमारी बेटी आपके बेटे से इक्कीस ही है। मेरा दावा है कि वह कभी भी आपके सम्मान पर कोई आंच नहीं आने देगी।’ अनूप सिंह ने कहा।
शायद रामशरण को अनूप सिंह द्वारा की गयी अपनी धेवती की तारीफ और उसे अपने बेटे से इक्कीस बताने की बात चुभ गयी थी। उसने अनूप सिंह को यह बताने का निर्णय किया कि अनूप सिंह लड़की वाला था और उस समय वह एक याचक के रूप में रामशरण के घर पर बैठा था अतः उसने अनूप सिंह की बात के उत्तर में कहा, ‘देखिए साहब, लड़कियों में ये गुण तो होने ही चाहिएं। और रही बात पढ़ाई-लिखाई की, तो उनकी पढ़ाई-लिखाई की कोई खास कीमत नहीं होती।’
‘क्यों चौधरी साहब, क्या लड़कियां बिना स्कूल जाये ही या कूड़े के ढेर पर पड़ी-पड़ी ही पढ़-लिख लेती हैं जो उनकी लिखाई-पढ़ाई की कोई कीमत नहीं होती? या लड़कियां कूड़े के ढेर से लिखने-पढ़ने का खर्चा और खाना-कपड़ा उठाकर लाती हैं?’ अनूप सिंह बोले,
‘देखिए चौधरी साहब आप बेटी वाले हैं, इसलिए आपको ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिएं।’ रामशरण ने अनूप सिंह पर बेटे वाला होने का प्रभाव डालने का प्रयास करते हुए कहा।
रामशरण को पूरी उम्मीद थी कि अनूप सिंह उसके इस प्रहार से चित्त हो जायेंगे और उनकी बोलती बन्द हो जायेगी, किन्तु अनूप सिंह उस समय यह भूल गये कि वे वहां अपनी धेवती के लिए वर की तलाश में आये थे और उन्हें परम्परा के अनुसार अपने आप को रामशरण के समक्ष दब्बू और निरीह प्राणी दर्शाना आवश्यक था। उन्होंने उत्तर दिया, ‘चौधरी साहब आपके कहने का यह अर्थ है कि बेटी वाले इंसान नहीं होते और उन्हें अति दीनता का प्रदर्शन करते हुए हाथ जोड़े हुए गर्दन और निगाहें नीचे कर बेटे वालों के पैरों में लेटे रहना चाहिए। क्या बेटियों वालों को सिर्फ इसीलिए मुंह खोलने का अधिकार नहंीं है क्योंकि उन्हें समाज के बनाये नियमों के मुताबिक अपनी बेटियों का रिश्ता लेकर बेटे वालों के द्वार पर जाना पड़ता है? बेटे वाला केवल इसीलिए बड़ा होता है क्योंकि बेटी वाला उकसे द्वार पर आता है? क्या केवल इस बात कारण ही वे इतने तुच्छ हो जाते हैं कि बेटे वाले उनको अपने घर पर बुलाकर उनका अपमान करें?’
‘नहीं—नहीं मेरा कहने का ऐसा मतलब नहीं था।’ रामशरण ने अब बात को संभालने का प्रयास किया।
‘चौधरी साहब, मैं पिछले 45 साल से पत्रकार हूं। उड़ती चिड़िया के पर गिनना ही पत्रकार का काम होता है। मैं आपके कहने का मतलब अच्छी तरह से समझ चुका हूं। मैं आपको बता दूं कि मैं पत्रकार के साथ अपनी कौम के सबसे बड़े संगठन का पदाधिकारी भी हूं। तुम्हारा भाई भी उस संगठन से जुड़ा है। मैं तो आपके भाई के कहने पर ही यह रिश्ता लेकर आया था। मुझे पता नहीं था कि आपके इलाके में बेटियों वालों का इसी तरीके से मेरा सम्मान कियास जाता है। आज मुझे आपसे यह नयी जानकारी मिली कि बेटी वालों को बेटों के मां-बाप के सामने बहुत ही अदब के साथ सिर और आंखें झुकाकर बात करना चाहिए।’
‘चौधरी साहब छोड़िये, इनके मुंह से निकल गयी ये बात। दरअसल ये शायद कुछ और ही कहना चाहते थे।’ अनूप सिंह के साथ आये चौ- खजान सिंह ने बात को सम्भालने का प्रयास करते हुए कहा। रामशरण को अब जाकर इस बात का अंदाजा हुआ था कि उसने बिना सोचे-समझे जो बात कह दी थी, वह अब उसे आसानी से नहीं सम्भाल पायेगा। जब खजान सिंह उसके समर्थन में बोले, तो उसने कुछ राहत की सांस लेते हुए कहा, ‘मेरा कहने का यह मतलब नहीं था। आपने असल बात तक मुझे आने ही नहीं दिया।’
‘तो कहिये ना। मैं तो कब से आप से कह रहा हूं कि आप असल बात कह डालिए। मेरी आपसे चार बार टेलीफोन पर बातें हुई थीं। तब भी आपने बात को साफ नहीं किया था। —खैर अब आप मुझे वह बात साफ-साफ बता दीजिए जो आप कहना चाहते थे।’ अनूप सिंह ने स्वयं को संयत करने का प्रयास करते हुए कहा।
‘मैंने तो सोचा था कि आप मेरा कहने का अर्थ समझ ही गये होंगे। चलिये मैं ही बात को साफ किये देता हूं। मैं यह जानना चाहता था कि आपका शादी का बजट क्या है?’
‘इसमें बजट बताने की बात कहां से आ गयी चौधरी साहब?’ अनूप ने पूछा, ‘यदि आप दहेज में कोई वस्तु विशेष लेना चाहते हैं, तो स्पष्ट कहिये। या आप मेरी हैसियत जानना चाहते हैं? क्या आप हर रोज मुझसे खर्च का हिसाब लियास करेंगे कि मैंने कहां कितना और कैसे खर्च किया? मैं अपनी बेटी की शादी को पचास लाख में निपटाता हूं यास पचास हजार में, यह तो मेरी सिरदर्दी होगी, आपको मेरे बजट से क्या लेना देना है?’
‘दरअसल लड़की वाले को अपना बजट तो बताना ही पड़ता है। यह तो एक रिवाज है। आपके बिना बजट बताये हमें कैसे पता चलेगा कि आप हमारे स्तर की शादी करेंगे या नहीं?’
अनूप सिंह पर अब रामशरण की मंशा पूरी बात स्पष्ट हो चुकी थी। वह समझ चुके थे कि रामशरण दहेज लोभी है और वह घुमा फिराकर दहेज की मांग कर रहा है। उन्हें विश्वास हो गया था कि वह दहेज लोभी परिवार ओछी मानसिकता वाला है। निश्चित ही उस परिवार में कोई लड़की खुश नहीं रह सकती थी। उन्होंने रामशरण को तुर्की-ब-तुर्की जबवाब देते हुए कहा, ‘तो अब बात साफ हुई कि आप अपने बेटे की शादी एक योग्य और संस्कारयुक्त बेटी से नहीं बल्कि केवल बड़े बजट से करना चाहते हैं।’
‘अब आप कुछ भी समझ लीजिए।’ रामशरण अनूप सिंह के स्वर में छिपे व्यंग्य को नहीं समझ पाया था।
‘आप तो इस प्रकार बार-बार मुझसे मेरा बजट पूछ रहे हैं मानो मैं किसी दुकान पर खड़ा कोई सामान खरीद रहा हूं और आप उस दुकान के दुकानदार हैं और मुझसे मेरा बजट पूछ रहे हैं। यानी कि आपने अपने बेटे को बाजारू वस्तु बना दिया है। यदि बिना बजट के बात नहीं बन सकती, तो अब आप ही बताइए कि आपके बेटे की कीमत क्या है? अगर हमारे बस की बात होगी तो हम उसे खरीद लेंगे, नहीं तो मना कर देंगे।’ अनूप सिंह ने रामशरण के मर्म पर चोट करते हुए कहा।
अनूप सिंह की इस बात पर रामशरण तिलमिला उठा, ‘चौधरी साहब आपने यह बात कैसे कह दी? क्या हम अपने बच्चे को बेच रहे हैं?’
‘रामशरण जी, इस शादी की बात को चलते-चलते आज दो सप्ताह हो गये। मैंने चौ- खजान सिंह के द्वारा कई बार आपसे यह जानना चाहा कि आपको और आपके घर वालों को मेरी बेटी का रिश्ता पसन्द आया या नहीं या आपकी या आपके बेटे की कार आदि की कोई विशेष मांग तो नहीं हैं। आपने या आपके परिवार की ओर से लड़की के किसी गुण आदि के विषय में किसी ने कुछ नहीं पूछा। बस आपकी यही रट है कि मैं अपना बजट आपको बताऊं। क्या आप नहीं जानते कि बजट तो दुकानदार अपने ग्राहकों से पूछते हैं? यानी आप हुए दुकानदार, मैं हुआ आपका ग्राहक और आपका बेटा हुआ दुकान का सामान। आपने बार-बार मुझसे मेरा बजट पूछकर यही तो साबित किया है कि क्या मैं आपके बेटे को खरीद सकता हूं? बताइये क्या मैं गलत कह रहा हूं?’
‘नहीं—नहीं ऐसा नहीं है। मैं यह कहना चाहता था कि ऐसा रिवाज चल रहा है कि बेटी वाले अपना बजट बताते हैं।’ रामशरण ने विरोध प्रदर्शन किया। किंतु उसके विरोध प्रदर्शन में अब ज्यादा शक्ति नहीं थी।
अनूप सिंह ने गरम लोहे पर चोट करते हुए कहना जारी रखा—‘चौधरी साहब मैं बिल्कुल सही कह रहा हूं। जब आप मेरा बजट पूछ रहे हैं, तो आप दुकानदार हुए और मैं आपका ग्राहक हुआ कि नहीं? अगर दुकानदार को ग्राहक का बजट पूछने का अधिकार है, तो ग्राहक को भी यह अधिकार है कि वह वांछित वस्तु का मूल्य जान सके। आप बार-बार मेरा बजट पूछा रहे हैं, तो आप ही बताइये कि आपके बेटे की कीमत क्या है? अब यह देखना मेरा काम है कि आपके बेटे को खरीदना मेरे बजट में है या नहीं। आपने बजट-बजट का राग अलापते हुए एक बार भी यह नहीं पूछा कि हमारी बच्ची कैसी है-वह सुंदर है या नहीं, वह कितनी पढ़ी-लिखी है, वह आपके बेटे के योग्य है भी या नहीं। आपने दस दिन से बस बजट की रट लगा रखी है। यानी आपकी निगाह में हमारी बेटी के किसी गुण और उसकी शिक्षा का कोई मूल्य नहीं है। साफ हो गया है कि आप अपने बेटे की शादी हमारी बेटी से नहीं बड़े बजट से करना चाहते हैं। यानी आप अपने बेटे को खुले मार्केट में खड़ा कर उसकी बोली लगा रहे हैं। जिसका ज्यादा बजट आप देखेंगे आप वहीं अपने बेटे की शादी करेंगे। आपको इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि आपकी होने वाली पुत्रवधु कैसी है। वह चाहे काली-कलूटी हो, चाहे ठिगनी या मोटी हो, चाहे संस्कार विहीन हो या मंद बुद्धि ही क्या न होे। बस उसके बाप का बजट मोटे से मोटा होना चाहिए।’
अनूप सिंह रामशरण के चेहरे पर आने वाले भावों को बड़े गौर से देख रहे थे। अनूप सिंह के शब्दों से रामशरण तिलमिला गये थे, लेकिन वे अपने शब्दों के कारण अपने आप को संयत किये हुए थे।
अनूप सिंह ने रामशरण के मर्म पर अंतिम चोट करने का निर्णय कर लिया। उन्होंने क्षण भर में एक कहानी गढ़ी और रामशरण से कहा, ‘रामशरण जी, मैं अपनी धेवती की शादी यहां नहीं करूंगा। हां आपके सामने मैं एक और प्रस्ताव रख रहा हूं। मेरे साले की एक बेटी है। बस उसमें एक छोटी सी कमी है कि वह कक्षा आठ फेल है, उसकी उम्र भी थोड़ा अधिक है। वह करीब 30 साल की है। वह मेरी धेवती जैसी सुंदर तो नहीं है, लेकिन उसे कुरूप भी नहीं कह सकते। हां उसका कद थोड़ा कम है। वह पांच फुट से कम ही है। रंग भी काफी दबता हुआ है। पर उसे काली नहीं कह सकते। यह शादी काफी बड़े बजट की होगी। मेरा साला इस शादी में कम से कम 70-80 लाख रुपये तक जरूर खर्च करेगा। क्योंकि उसके यही एक बेटी है। उसने पिछले दिनों ही अपनी बेटी को शादी में देने के लिए दिल्ली में दो करोड़ का एक फ्रलैट खरीदा है। उसके लगभग 80 बीघे में पॉपुलर पेड़ लगा रखे हैं, जिसमें से करीब पचास बीघे पॉपुलर कटने के लिए तैयार हैं।’
‘अजी रंग में क्या रखा है, रंग तो दो ही होते हैं। क्या आपको पता नहीं है कि भगवान कृष्ण काले होते हुए भी कितने सुंदर थे। रही बात पढ़ाई-लिखाई की, तो हमें कौन बहू से नौकरी करानी है। जहां तक उम्र का सवाल है, 30 साल की उम्र कोई ज्यादा नहीं होती।’ रामशरण ने किसी गिरगिट की भांति अपना रंग बदलते हुए कहा।
अनूप सिंह ने देखा कि उनका नया प्रस्ताव सुनते ही रामशरण की आंखों में नयी चमक आ गयी थी। एक प्रकार से उसने शादी की स्वीकृति दे दी थी। यानी यह सारा कमाल अनूप सिंह के बताये बड़े बजट का था। रामशरण थोड़ी देर पहले अनूप सिंह द्वारा किये गये अपमान को क्षण भर में ही भूल गया था। उस समय उसकी आंखों के सामने केवल ‘बड़ा बजट’ नाच रहा था।
‘तो यह रिश्ता कैसा रहेगा?’ अनूप सिंह ने रामशरण से पूछा।
‘रिश्ते में तो कोई भी खोट नहीं है भाई साहब। लड़की के पिता से कहो कि वह एक दिन आकर बात पक्की कर ले। या आप मेरी उनसे बात करा दो। देखिए, यह शादी का सीजन है। हर रोज दो-चार, दो-चार रिश्ते वाले टकराते रहते हैं। अगर मैंने किसी को जुबान दे दी तो फिर मुश्किल हो जायेगी।’ रामाशरण ने अपने हिसाब से तुरुप चाल चली।
‘लेकिन चौधरी साहब मेरा साला शायद इस साल बेटी की शादी न करे। इस साल उसने दिल्ली में बेटी के लिए दो करोड़ का एक फ्लैट खरीदा है। उसका विचार है कि वह अगले साल ही अपनी बेटी की शादी करेगा। क्योंकि अभी उसके पेड़ भी नहीं बिके हैं। उसका कहना है कि पेड़ों का पैसा हाथ में आने पर ही वह शादी की बात आगे बढ़ायेगा।’ अनूप सिंह ने चारपाई से उठते हुए कहा।
‘कोई बात नहीं, एक साल तो चुटकयों में निकला जाता है। वैसे आपका साला कोई बिजनेस करता है या खेती ही करता है?’ रामशरण ने पूछा।
‘वह कोई बिजनेस नहीं करता। बस वह ठेके पर 50-60 बीघे जमीन ठेके पर लेकर उसमें आलू और मटर उगाता है। अपने खेतों में तो उसने पोपुलर के पेड़ लगा रखे हैं।’ अनूप सिंह ने कहा।
‘आप अपने साले से बात कर लीजिये। मेरी ओर से तो इस रिश्ते को पक्का ही समझो,’ बात करतेे-करते उसने बैठक के ऊपर बने आवास की ओर मुंह उठाकर कहा, ‘अरे बालको जरा दो लोटे दूध तो भिजवाओ।’
‘नहीं—नहीं दूध को रहने दो। मैं आपको एक बार और स्पष्ट रूप से यह बता देना चाहता हूं कि लड़की आठवीं फेल है। कद भी उसका पांच फुट से कम ही है। उसका रंग गहरा सांवला है।ं उसकी उम्र भी 30 साल के आसपास है। इस कारण मेरी सलाह है कि पहले आपका सारा परिवार लड़की को निगाह में निकाल ले। उसके बाद ही बात आगे बढ़ायी जाये, तभी ठीक रहेगा। वैसे उस रिश्ते की बात भी मुझे ही फाइनल करनी है।’
‘वाह जी वाह, क्या बात है साहब। तो फिर देर क्यों की जाए? कद और उम्र से कुछ फर्क नहीं पड़ता। बच्चे में संस्कार होने चाहिएं बस। हमें और कुछ नहीं चाहिए।—अरे दूध लाओ बालको जल्दी—’ रामशरण ने एक बार फिर ऊपर मुंह उठाकर आवाज दी। उसने अपनी बात कहना जारी रखा, ‘जब आप आये हुए ही हैं, तो यह बात आज ही पक्की हो जानी चाहिए। वरना यह तो वही बात हो जायेगी कि घर आया नाग ना पूजिये, बमी पूजन जाय। तो मैं इस रिश्ते को पक्का समझूं?’
‘पहले अपने घर वालों से तो बात कर लो। मुझे भी बेटी वाले को एक बार सारी बातों के बारे में बता लेने दो। उस तरफ से हरी झण्डी होते ही रिश्ता पक्का समझिये। लेकिन बात यह है कि मेरा साला जरा आड़ियल है। अगर आपने उससे भी उसका बजट पूछ लिया, तो वह भड़क सकता है।’
‘अजी गोली मारिये बजट को। मैं आपसे माफी मांगता हूं कि मैंने आपसे ऐसी बात क्यों की?’ रामशरण अब अपने स्वर में मिश्री घोलने का प्रयास कर रहा था। उसकी निगाहों के सामने दो करोड़ का फ्लैट और लाखों रुपयों से भरी थैली दिखाई दे रही थी। इस प्रलोभन ने रामशरण के विवेक को हर लिया था। अब वह अनूप सिंह की खुशामद पर आमादा हो गया था। अब वह किसी भी तरह से इस रिश्ते को हाथ से निकलने नहीं देना चाहता था। उसने अनूप सिंह की ओर किंचित झुकते हुए कहा, ‘चौधरी साहब मैं अपनी गलती मानता हूं जो मैंने आपसे बजट की बात की। वैसे बात तो यह अपमान वाली ही है, पर मेरा आपका अपमान करने का कोई इरादा नहीं था।—अच्छा यह तो बताइये कि आप व्हिस्की तो ले लेते होंगे?’
‘नहीं—नहीं—चौधरी साहब, मुझे माफ कीजिए, मैं इस ऐब से कोसों दूर हूं।’ अनूप सिंह ने रामशरण के सामने हाथ जोड़ दिये।
‘अरे साहब यह कोई ऐब थोड़े ही है, यह तो शौक की चीज है। और फिर आप ठहरेे पत्रकार। आप तो जरूर ही लेते होंगे। आज रात को आप यहीं रुकेंगे और आपको मेरे साथ व्हिस्की लेनी ही होगी। आपको मेरी कसम है।’ रामशरण ने अनूप सिंह की खुशामद-सी करते हुए कहा।
अनूप सिंह रामशरण के गिरगिटी व्यवहार को देखकर चकित थे। उन्होंने खजान सिंह को आंखों ही आंखों खड़ा होने का संकेत किया और मामले का पटाक्षेप करते हुए बोले, ‘चौधरी रामशरण सिंह, मैं दारू क्या अब आपके घर का तो पानी पीना भी पाप समझता हूं। अब मेरी सबसे खास बात सुनिये। न तो मेरे किसी साले की कोई लड़की फिलहाल शादी योग्य है और न ही उसका दिल्ली में दो करोड़ रुपयों का फ्रलैट है। यह तो मैंने आपकी आत्मा का बजट नापने के लिए एक छोटा सा नाटक किया था। मैंने देख लिया है कि आप बेटी वाले का बजट पूछने चक्कर में अपनी आत्मा को बेच चुके हैं। यहां तो ऊंची दुकान फीका पकवान जैसी बात मिली।—अब अपनी इस दुकान में किसी और ग्राहक को फांसना—चलो चौधरी साहब।’
अनूप सिंह खड़े होकर खजान सिंह का हाथ पकड़कर कर बाहर की ओर चल दिये। रामशरण हक्का-बक्का बैठा रह गया था। उसकी जुबान से एक बोल तक नहीं निकल सका था। अनूप सिंह ऐसा अनुभव कर रहे थे मानो वे किसी जाल से बाहर निकले हों