मुगलों के विरुद्ध जमींदार गोकुल सिंह की क्रांति

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जमींदार गोकुल सिंह (जिसे आमतौर पर गोकला भी कहा जाता है) सन् 1660-70 के दशक के बीच तिलपत के इलाके में सबसे अधिक प्रभावशाली जमींदार बन चुका था। तिलपत के जमींदार के रूप में उसने मुगल सेना को ऐसे समय में चुनौती दी थी, जबकि यह अत्यंत ही जोखिम का काम था। उसमें संगठन, साहस दृढ़ता की जबरदस्त क्षमता थी। इतिहासकार उपेंद्रनाथ शर्मा का कहना है कि गोकला का जन्म सिनसिनी में हुआ था और वह सूरजमल का पूर्वज था।

औरंगजेब काल में सत्ता के दो केंद्र

मुगल काल में दिल्ली और आगरा सत्ता के दो-दो केन्द्र बने हुए थे। प्रत्येक मुगल शहंशाह इन दोनों स्थानों से शासन पर नियंत्रण रखता था। मुगल बादशाह प्रायः इन दोनों ही स्थानों से शासन की बागडोर संभालते थे। समय और परिस्थितियों के अनुसार उनकी राजधाानी कभी दिल्ली तो कभी आगरा अदलती-बदलती रहती थी। आगरा और दिल्ली में जाटों का इलाका उस समय तक शांत था. जाट अपनी जमीन जोतते, मालगुजारी देते और सेना के लिए आदमी जुटाते।

औरंगजेब की अनुपस्थिति से बेलगाम हुई दिल्ली

दक्षिण अभियान पर जाने के कारण औरंगजेब लंबे समय (1661-1707) तक दिल्ली से अनुपस्थित रहा। इसके फ़लस्वरूप अनिवार्यतः सभी क्षेत्रों में शिथिलता आ गयी। उसके पुत्र और सबसे वरिष्ठ सेनाध्यक्ष और सलाहकार उसके साथ ही गये थे। द्वितीय श्रेणी के लोगों को वह शासन चलाने के लिए दिल्ली में छोड़ गया था। उस समय दूरस्थ नियंत्रण से शासन चलाया जा रहा था। दक्षिण के सैनिक अभियानों का खर्च चलाने में राजकोश पूरी तरह से खाली हो गया था।

आगरा और दिल्ली के जाटों ने दिखाया दमखम

दिल्ली शासन के मालगुजारी वसूल करने वाले दस्ते किसानों को परेशान करते थे। लेकिन औरंगजेब की अनुपस्थिति में, जो लोग मालगुजारी रोक लेते थे, उनसे भली-भांति निपटने का दमखम साम्राज्य में नहीं रह गया था। इस परिस्थिति में शाही परगनों के जाटों को मनचाहा अवसर मिल गया था। जिस प्रांत में जाटों की आबादी थी, वहां सुदृढ़ ‘शासन और निरंतर सतर्क बने रहने की आवश्यकता थी। लेकिन शासन की दुर्दशा का फायदा उठाते हुए जाटों ने एकता दिखाते हुए अपनी मुग़ल सल्तनत के विरुद्ध अपनी शक्ति को बढ़ाना शुरू कर दिया. और इस शक्ति का नेतृत्व किया जाट नेता गोकुल सिंह ने.

गुरु समर्थ रामदास की हिंदुत्व को बचाने की अपील

मराठा सरदार शिवाजी के गुरू समर्थ रामदास मुगल आततायी औरंगजेब के विरुद्ध सारे देश मं एक जनमत तैयार कने के लिए भ्रमण कर रहे थे। उन्होेंने मुजफ्फ़रनगर, सहारनपुर, हरिद्वार, मेरठ और गढ़मुक्तेश्वर में लोगों को एकत्र कर हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु आत्मोसर्ग करने का आह्वान किया था। इसी क्रम में जगत गुरु समर्थ रामदास गढ़मुक्तेश्वर के कार्तिक स्नान मेले में आये हुए धर्म परायण लोगों को सम्बोधित कर कहा, ‘‘मैं मुगलों के अत्याचारों के विरुद्ध हिन्दुओं में एकता के लिए पूरे भारत मेें घूम चुका हूँ. उत्तर भारत में से मुझे कोई ऐसा जाट नायक चाहिए, जो मातृभूमि और हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु अपने क्षेत्र के लोगों को एक कर सके.”

‘जय भवानी’ के रणघोष के साथ गोकुल सिंह बने नेता

समर्थ गुरु रामदास का यह कथन सुनकर जमींदार गोकुल सिंह सामने आये. उन्होंने समर्थ गुरु रामदास से कहा, “आप मुझे अपना आशीर्वाद दीजिये.” और यह कहकर उन्होंने सभा में आये लोगों को देखा. उनके देखते ही सभा में उपस्थित 500 लोग उठ खड़े हुए. उन लोगों में सभी जातियों के लोग थे. उन्होंने कहा, “हम जमींदार गोकुल सिंह के नेतृत्व में बलिदान देने को तैयार हैं.”  इसके बाद गुरु रामदास ने गोकुल सिंह को अपनी तलवार भेंट की. गोकुल सिंह ने तलवार उठायी और पूरी शक्ति के साथ सभा में रणघोष किया, ‘‘जय भवानी।’’ इसके साथ ही सभा में उपस्थित सभी लोगों ने समवेत स्वरों में ‘जय भवानी’ का जयघोष किया.

गोकुल सिंह ने सभा मेें घोषणा की, ‘‘मैं शपथ लेता हूं कि मैं इस्लामी धर्मांध राज्य सत्ता को उखाड़ कर ही दम लूंगा। जब तक मेरे शरीर में प्राण हैं, मैं मुस्लिम आतंकवाद को समूल नष्ट करने के लिए जी-जान एक करता रहूंगा।’’ और इसी पल गोकुल सिंह ने इस्लामी कट्टरवाद से हिन्दू हितों की रक्षा करने के लिए क्रांति की शुरुआत की. और हिन्दुओं की सुप्त भावनाओं को जगाने और उनमें अपने धर्म की रक्षार्थ प्राणोत्सर्ग करने की भावना जगा दी।

जमींदार गोकुल सिंह ने मुगलों के विरुद्ध किया रणघोष

गोकलराम ने अपने क्षेत्र में पहुंचते ही सबसे पहला काम यह किया कि उसने क्षेत्र के सभी किसानों का आह्नान करते हुए कहा, ‘‘हम आज से मुगल सत्ता का जुआ उतारकर फ़ेंकते हैं। हम मुगलों के गुलाम नहीं हैं. भारत हमारा है, हम स्वतंत्र हैं। हम आज से ही मुगलों को मालगुजारी देना बंद करेंगे।” गोकुल सिंह के इस आह्वान से मुग़ल अत्याचारों से त्रस्त जनता में नव जीवन फूंक दिया. हजारों युवा गोकुल सिंह के साथ खड़े हो गए और हिंदुत्व की रक्षा करने के लिए मुगलों के विरुद्ध क्रांति का आरंभ कर दिया.