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चौ. भोपाल सिहं का परिचय
जाट समाज के सच्चे नायक चौ. भोपाल सिहं का जन्म वर्ष 1947 में उ. प्र. के बागपत जिले के कासिमपुर खेड़ी गांव में तोमर गोत्राीय सम्पन्न जाट चौ.सुखबीर सिहं के घर में हुआ था। भोपाल सिंह के दादा चौ. दलेल सिंह छह फुट 4 इंच ऊंचे कद के कसरती शरीर के श्रमशील व सम्पन्न किसान थे। भोपाल सिंह की दादी श्यामो देवी अत्यंत दयालु और धर्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। भोपाल सिंह जब दो या तीन वर्ष के थे तभी उनकी माता भगवती देती का देहान्त हो गया। चौ. भोपाल सिहं की दादी श्रीमती श्यामो देवी ने भोपाल सिंह का पालन-पोषण किया। श्यामो देवी बेहद सुलझी हुई महिला थीं। वे भोपाल सिहं से प्रायः कहा करतीं, कि जिन्दगी में न तो किसी का बुरा सोचना और न ही किसी का कभी बुरा करना। कभी किसी गरीब आदमी के पेट पर लात नहीं मारना। तुम जिंदगी में तभी आगे बढ़ सकते हो जब अपने साथियों और सहयोगियों के दिल में अपने लिए जगह बना कर रखोगे। तुम्हारे द्वार पर जब भी कोई आदमी कुछ आस लेकर आये, तो उसे कभी खाली हाथ मत लौटाना। अपनी दादी की छत्रछाया में रहते हुए बालक भोपाल सिंह के अन्दर एक ऐसे इन्सान का बीजारोपण हुआ जो आगे चलकर एक कर्मठ, ईमानदार, अटल इरादों वाले शख्स के रूप में विकसित हुए। उन्होंने जीवन भर अपनी दादी की दी हुई शिक्षाओं को गांठ बांध कर रखा और भूल से भी कभी किसी का दिल नहीं दुखाया। दादी के दिये मूल मंत्र ने उनको जीवन में नित नयी प्रेरणा दी और जीवन संघर्ष में कदम-कदम पर उनका मार्गदर्शन किया।
प्रारंभिक शिक्षा
भोपाल सिंह ने बीएससी करने के बाद दादी श्यामो देवी की प्रेरणा से दिल्ली से आईटीआई और इलैक्ट्रिकल्स में पोलीटेक्नीक डिप्लोमा किया। जीवन में कुछ विशेष उपलब्धि हासिल करने के दृढ़ निश्चय और अपने कर्तव्य के प्रति समर्पण के कारण भोपाल सिंह दिन में स्कूल में पढ़ते और शाम को एक दुकान पर बिजली के उपकरणों की मरम्मत का काम सीखते थे। उन्हांने रात-दिन श्रम करके लाजपतनगर में एक दुकान लेकर राज इलैक्ट्रिीकल के नाम से अपनी वर्कशाॅप खोल ली। लगन और मेहनत का फल जल्दी ही सामने आया। वर्कशाप का काम तेजी से बढ़ने लगा। कुछ ही दिनों में वर्कशाप में कर्मचारियों की संख्या बढ़कर बीस हो गयी
मेधा के धनी भोपाल सिंह
भोपाल सिंह तोमर का मस्तिष्क अभियान्त्रिकी में अत्यंन्त उर्वरा था। वह अपनी वर्कशाप में नित्य कुछ न कुछ नये प्रयोग करते रहते थे। उन्होंने अनेकों फैक्ट्रियों की बन्द पड़ी बड़ी-बड़ी और अत्यन्त मंहगी विदेशी मशीनों की मरम्मत कर उनको पुनः काम करने योग्य बनाया। उन्होंने संगमरमर पत्थर की खदान में भारी-भारी पत्थरों को उठाने वाली क्रेन के लिए इलैक्ट्रीकल अटैचमैण्ट मशीन का आविष्कार कर मारबल खानों में से बड़े-बड़े पत्थरों को काटने वाली क्रेनों की कार्य क्षमता 100 गुना तक बढ़ा दी। भोपाल सिंह ने इस मशीन की पूरे राजस्थान की पत्थर खदानों को आपूर्ति कर आशातीत धन अर्जित किया।
दादी व पत्नी की प्रेरणा ने बनाया शिक्षाविद्
मकराना में हिदु-मुस्लिम झगड़ों में भोपाल सिंह की फैक्ट्री जला दी गयी तो चौ. भोपाल सिंह दिल्ली चले आये। इस बीच उनकी शादी हो चुकी थी। संयोग से श्रीमती राजबाला देवी भी अनपढ़ थीं। उनको अपने अनपढ़ रहने का अफसोस था और वे शिक्षा के लिए कुछ करना चाहती थीं। अतः उन्होंने चौ. भोपाल सिंह से आग्रह किया कि वे शिक्षा के प्रसार में अपना योगदान दें। भोपाल सिंह ने पत्नी के आग्रह पर भजनपुरा बी ब्लाॅक में अपनी दादी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के उद्देश्य से सन् 1982 में ‘एस. डी. पब्लिक स्कूल’ (श्यामो देवी पब्लिक स्कूल) की स्थापना की। समय के साथ एस डी पब्लिक स्कूल आशातीत उन्नति करता गया ओर शिखर की ओर बढ़ता गया। आज पूर्वी दिल्ली में ही एस डी पब्लिक स्कूल की तीन शाखाएं शिक्षा के प्रसार में संलग्न हैं। 45 बच्चों के साथ आरम्भ हुए एस डी पब्लिक स्कूल में आज दो हजार के लगभग बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
चमत्कारिक परीक्षा परिणाम
एस डी पब्लिक स्कूल में 1992 में दसवीं कक्षा आरम्भ हुई। पहले बैच में 7 लड़कियां थीं। सातों लड़कियां अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुईं। इसके बाद से आज तक इस विद्यालय का दसवीं का रिजल्ट चमत्कारिक तथा आश्चर्यजनक रूप से शत प्रतिशत रहा है।
चौ. भोपाल सिंह तोमर अपने स्कूलों में उच्च शिक्षित शिक्षकों की ही नियुक्ति करते हैं। उनकी मान्यता है कि किसी भी छात्र को जीवन में पढ़ने का केवल एक ही अवसर मिलता है। और इस एकमात्र अवसर को सफल अथवा निरर्थक बनाना छात्र के स्कूल और उसके शिक्षकों पर पूरी तरह से निर्भर होता है। चौ. भोपाल सिंह की इसी भावना के फलस्वरूप वर्तमान समय में एस डी पब्लिक स्कूल पूर्वी दिल्ली के अति महत्वपूर्ण विद्यालयों में उच्च स्थान पर आता है।
कामयाबी की राह पर
एस डी पब्लिक स्कूल की व्यवस्था सुचारू हो जाने के बाद चौधरी भोपाल सिंह ने शैक्षणिक पुस्तकों का प्रकाशन आरम्भ करने के उद्देश्य से अपनी पत्नी श्रीमती राजबाला को समर्पित करते हुए उनके नाम पर राजश्री प्रकाशन आरम्भ किया। अपनी पत्नी के सुझाव पर ही उन्होंने राज प्रिण्टर्स के नाम से ट्रोनिका सिटी में अपना मुद्रणालय स्थापित किया। वर्तमान में राज प्रिण्टर्स दिल्ली एनसीआर के प्रमुख मुद्रणालयों में गिना जाता है। इस मुद्रणालय में 100 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं।
पारिवारिक उपलब्धियां
चौ. भोपाल सिहं दम्पत्ति के चार संताने हुईं-तीन बेटियां व एक बेटा। सबसे बड़ी बेटी पूनम की शादी सदरपुर निवासी श्री अजय कुमार से हुई। उनकी दूसरी पुत्री रेणु (डबल एम.ए. पीएचडी, बी.एड. तथा एमबीए तक शिक्षित और वर्तमान में आई पी यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट रजिस्ट्रार) की शादी सूरजमल शिक्षा संस्थान दिल्ली में प्रोफेसर डा. हरीश सिंह से हुई है। उनकी तीसरी पुत्री शिखा (एमएबीएड गोल्ड मैडलिस्ट-हरियाणा में तहसीलदार) का विवाह आयकर विभाग में कमिश्नर धीरज सिंह से हुआ है। चौ. भोपाल सिहं के पुत्र मनोज कुमार की शादी एमएससी बीएड, तक शिक्षित शालू से हुई है। मनोज कुमार राज प्रिण्टर्स की व्यवस्था सम्भालते हैं जबकि शालू एसडी पब्लिक स्कूल की व्यवस्था में चौ. भोपाल सिंह को सहयोग देती हैं। दैवयोग से महान आत्मा श्रीमती राजबाला का वर्ष 2014 में निध्न हो गया। उनके निधन से जहां चौ. भोपाल सिंह के परिवार ने एक नेक आत्मा को खो दिया, वहीं एस डी पब्लिक स्कूल ने एक दयालु संरक्षक को खो दिया।
सामाजिक सरोकार
चौ. भोपाल सिंह तोमर अत्यंत ही सामाजिक व्यक्ति हैं। वे अति उदार हृदय और दूसरों के दुख दर्द को पहचानने वाले हैं। धनी होने का गर्व उनको छू तक नहीं गया है। वे दिल्ली की अति सम्मानित सामाजिक संस्था समाज कल्याण व शैक्षिक ट्रस्ट के अध्यक्ष रह चुके हैं। वर्तमान में वह इस संस्था के संस्थापक संरक्षक हैं। चौ. भोपाल सिंह तोमर सामााजिक कार्यों के लिए किस सीमा तक समर्पित हैं, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने लगातार 10 वर्ष तक समाज कल्याण व शैक्षिक ट्रस्ट द्वारा आयोजित समस्त कार्यक्रमों का सम्पूर्ण व्यय स्वयं वहन किया है। संस्था के तमाम सदस्य व पदाधिकारी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि चौ. भोपाल सिंह तोमर के सहयोग के कारण ही समाज कल्याण व शैक्षिक ट्रस्ट संस्था आशातीत अभिवृद्धि कर पायी है और संस्था की जड़ें मजबूती से जम सकी हैं।
चौ. भोपाल सिंह जाट समाज के हितों के लिए भी पूरी तरह सजग हैं और अपने स्तर पर जाट समाज की उन्नति और बेहतरी के लिए भरसक प्रयास करने से कभी पीछे नहीं हटते। वह तन-मन-धन से सामाजिक सरोकारों को सहयोग देते हैं और अपनी प्रेस में सामाजिक आन्दोलनों से सम्बन्धित प्रचार सामग्री निःशुल्क प्रकाशित करते हैं।
समाज के नाम सन्देश
चौ. भोपाल सिंह समाज के नाम सन्देश में कहते हैं, ‘ जीवन में उन्नति के लिए केवल और केवल एक ही मूल मन्त्र होता है-दृढ़ संकल्प और कठिन परिश्रम। भाग्य से अधिक अपने कर्म पर विश्वास करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति पर उसके माता-पिता तथा समाज का कर्ज होता है, उसे उतारना हर व्यक्ति का धर्म होता है, अतः माता-पिता की सेवा के साथ ही अपनी सामथ्र्य के अनुसार समाज की सेवा भी अवश्य ही करनी चाहिए। चौ. भोपाल सिंह तोमर का मत है कि अपने कर्मचारियों को अपना गुलाम या नौकर नहीं अपना सहचर ही मानो और उनके दुख-दर्द को समझो।
चौ. भोपाल सिंह का मत है कि अपनी सन्तानों को संस्कार देने से पहले उनके सामने स्वयं को अच्छे संस्कारी माता-पिता सिद्ध करो, इसके बाद आप अपनी संतानों से अच्छी संतानें होने की आशा करें। उनका मानना है कि हमारे समाज में आपसी सहयोग की भावना की कमी हो गयी है जिसका परिणाम यह निकल रहा है कि लोग एक दूसरे को पीछे धकेलने में सुकून महसूस करते हैं।