जाट जाति की उत्पत्ति और इतिहास | जाट जाति की उत्पत्ति कैसे हुई | जाट शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई

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जाट शब्द अत्यंत ही प्राचीन है। व्याकरण भाष्कर महर्षि पाणिनी रचित धाातु पाइ में जट व जाट शब्दों की विद्यमानता उनकी प्रचीनता का एक अकाट्य प्रमाण है। पाणिनी ने एक स्थान पर लिखा है, ‘जट झट संघाते’ अर्थात ‘तेजी से संगठन बनाने वाले को जाट कहा जाता है।’ या ‘जाट बहुत शीघ्र संगठन बना लेते हैं’। इसके अतिरिक्त ‘शिव स्त्रेत’ नामक अति प्राचीन ग्रन्थ में भी जाट शब्द का उल्लेख मिलता है। इस ग्रन्थ में भगवान शिव के एक सहस्त्र नामों का उल्लेख हुआ है। शिव स्त्रोत के महाभारत के शल्य पर्व में भी उल्लेख किया गया है। इस ग्रन्थ में 489वें स्थान पर उल्लिखित है कि भगवान शिव का एक नाम ‘जट’ भी है।

उशना याट से भी मानते हैं जाट शब्द की उत्पत्ति

व्याकरणकार पाणिनी से बहुत समय पूर्व अर्थात महाराज श्रीकृष्ण से 38 पीढ़ी पूर्व उनके पूर्वज उशना याट हुए। उशना याट ने एक साथ एक सौ अश्वमेघ यज्ञ किये थे इसीलिए वे याट कहलाये गये। भाषा भेद के कारण याट शब्द का ‘य’ ‘ज’ में परिवर्तित हो गया और इस प्रकार नया शब्द बना जाट। भगवान श्रीकृष्ण के काल में जाट शब्द का प्रादुर्भाव हो चुका था। और भगवान श्रीकृष्ण उसी जाट परिवार में पैदा हुए। आज से लगभग 975 वर्ष पूर्व ईरान से आये एक इतिहासकार अलबरूनी ने अपने यात्र वृतान्त ‘भारत’ के पृष्ठ 287 पर लिखा है- ‘तब मथुरा शहर के शासक कंस की बहन से वासुदेव के यहां एक बच्चे का जन्म हुआ। ये जट्ट ‘जाट’ परिवार के पशुपालक निम्न शूद्र लोग थे।

कुछ इतिहासकार यदु नस्ल से जाटों की उत्पत्ति मानते हैं

इतिहास लेखक भाई परमानन्द जाटों के विषय में लिखते हैं-ऐसा मालूम होता है कि यादु नस्ल की एक शाखा जाट कहलाने लगी। जाट और यादु शब्द एक दूसरे से बहुत हद तक मिलते-जुलते हैं। यादुओं के एक कबीले हैहय का नाम जात या सुजात था। यह भी कहा जाता है कि कश्यप ऋषि ने अग्नि कुल के राजपूतों की भांति जाटों को भी क्षत्रिय  बनाया।

 

अंग्रेज लेखक नेशफ़ील्ड का मत

अंग्रेज लेखक नेशफ़ील्ड जो भारतीय जातीयशास्त्र  का अद्वितीय ज्ञाता था, लिखता है, “The word Jat is nothing more than the modern Hindi pronounciation of Yadu or Jadu, the tribe in which Krishna was born.” अर्थात् ‘‘जाट जदु के वर्तमान हिन्दी उच्चारण के सिवा और कोई दूसरा शब्द नहीं है, यह वही जाति है जिसमें कृष्ण पैदा हुए थे।’’

इतिहासकार कालिकारंजन कानूनगो

भारतीय इतिहास मर्मज्ञ कालिकारंजन कानूनगो के अनुसार ‘जब तक हम महाभारत में उल्लिखित जातृका एवं माद्रका के साथ जाट की पहचान स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हो जाते, जैसा कि प्रमुख विद्वान ग्रियर्सन और जेम्स कैम्पनी ने सुझाव दिया है, तब तक हमें प्राचीन समस्त साहित्य में कहीं जाटों का उल्लेख नहीं मिलता।’ ‘कानूनगो हिस्टारिकल एसेज, पृ- 43

जाटों को राजपूतों से भी उच्च दर्शाया गया

एक प्रसिद्ध जाट इतिहासकार के अनुसार जब बौद्ध धर्म का ह्रास हो रहा था और शंकराचार्य द्वारा नवीन हिंदू धर्म का प्रचार आरम्भ हुआ, उस समय जाटों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए जाटों को भगवान की बाजुओं से उत्पन्न क्षत्रियों से भी उच्च दर्शाने के लिए उन्हें शिव की जटाओं से जन्म होने का प्रलोभन भरा वर्णन देवसंहिता नामक ग्रन्थ में किया गया। इस सम्बन्ध में देव संहित में कहा गया है, ‘जट जाति की उत्पत्ति का जो इतिहास है, सो अत्यंन्त आश्चर्यमय है। इस इतिहास से देव जाति का गर्व खर्च होता है। इस कारण इतिहास के वर्णनकर्ता, कविगणों ने जट्ट जाति के इतिहास को प्रकाशित नहीं किया है। हम उस इतिहास को तुम्हारे पास यथार्थ रूप में वर्णन करते हैं।’

भगवान शिव का अंश भी माना जाता है जाटों को

पौराणिक कथाओं में शिव की जटाओं से जाट की उत्पत्ति होने की कथा भी प्रचलित है। यदि हम इस पर गंभीरतापूर्वक मनन करें, तो इससे यह प्राप्त होता है कि शिव कुछ गणाें ‘प्रांतों’ के अधिापति थे। उनके अनुयायी जाट थे। शिव की जटाओं का अर्थ पंचायत था। शिवजी का पंचायती संगठन जट-संघ था। इसलिए शिवजी भी जाट कहलाते हैं। रावण ने शिव-स्तोत्र में शिव को ‘जटाओं वाला जाट’ कहा है। जाट जितने भगवान शिव को मानते हैं, वे उतना किसी और देवता को नहीं मानते। सम्भवतः जाटों का शिव के प्रति रुझान इसीलिए है कि वे भगवान शिव के अंश कहे जाते हैं।


जाट का मूल रूप जट है

ऐतिहासिक रूप में यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि जाट शब्द का मूूूल रूप जट् है। जट् शब्द अत्यंत ही प्राचीन और प्रामाणिक है। प्राग्बौ) काल में भाषा का स्वरूप निरंतर प्राकृत और विकृत होता जा रहा था। कोई भाषा सम्बन्धाी लिखित नियमावली नहीं थी। आज से लगभग सवा चार सौ वर्ष पूर्व, महाभारत काल से लगभग 800 वर्ष बाद महर्षि पाणिनी का जन्म हुआ जिन्होंने संस्कृत के नियम बनाये, जिसे हम व्याकरण कहते हैं। लम्बे और गहन शोध के बाद इतिहासकार प्रायः इस पर एकमत हैं कि जाट कोई एक मूल वंश नहीं है। उनमें सूर्यवंशी और चंद्रवंशी दोनों के ही गोत्र सम्मिलित हैं। इनमें अधिाकांश चंद्रवंशी यादव हैं।

जाट शब्द की उत्पत्ति के बारे में ठाकुर  संसार सिंह का मत

जाट इतिहास मर्मज्ञ ठा- संसार सिंह जाट शब्द की उत्पत्ति के सबसे अधिक निकट दिखाई देते हैं। उनके अनुसार जाट शब्द का असली रूप जट ही है। उनका मानना है कि जो लोग जाट की उत्पत्ति ज्ञाति से मानते हैं, वे भूल कर रहे हैं। उनके अनुसार जाट शब्द संस्कृत के जट शब्द का अपभ्रंश है। जाट वास्तव में पहले अनेकों तरह के कबीलों का संघ था। और इसी संघ का नाम जट् था। जातियां बनने के बाद इसी जट संघ में से अनेकों जातियां बनीं। और भाषा भेद के कारण यह शब्द कहीं जट तो कहीं जाट के रूप में प्रयुक्त होता है। उनका स्पष्ट मत है कि वर्तमान जाट शब्द की उत्पत्ति ज्ञाति शब्द से नहीं हुई है। क्योंकि ज्ञाति शब्द से जाट भले ही बन जाए, किंतु वह जट् नहीं बन सकता। जबकि जाट का शुद्ध रूप जट् ही है। जट् शब्द पौराणिक है और जाट उसका आधाुनिक भाषा भेद रूप है। जाट शब्द को आज भी अधिाकांश रूप में जट् ही बोला जाता है।

ज्ञाति से जाट शब्द की उत्पत्ति पर सन्देह

ठा- संसार सिंह के अनुसार, ‘महाभारत को एक बार भी पढ़ लेने वाले से यह बात छिपी नहीं है कि ज्ञाति नामक किसी संघ का प्रजातं=वाद के नाम पर कोई संगठन नहीं हुआ। भगवान श्रीकृष्ण के समय यादव वंश की अंधाक और वृष्णि नामक दो ही शाखाएं हुईं। उन्हीं का इतिहास में विस्तार से वर्णन आता है। दूसरी बात यह है कि जाट केवल प्रजातांत्रिक दल ही नहीं है, इसमें एकतं=ी सम्राट भी हुए हैं। चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक, कनिष्क, हर्षगुप्त, चंद्रगुप्त, महाराजा सूरजमल, जवाहर सिंह और महाराजा रणजीत सिंह तथा आज की वर्तमान रियासतें भी तो जाटों में हैं।’ ठा- संसार सिंह का स्पष्ट मत है कि प्रजातं=ी संगठन का नाम ज्ञाति प्रचारित कर उससे जाट बनना सर्वथा प्रमाणहीन है।
ठा- संसार सिंह जाटों को बाहर से आया हुआ बताने वालों के तर्कों को नहीं मानते। उनका कहना है कि यह तो उसी प्रकार की बात हुई जैसे आज समस्त भारतीयों को प्रवासी भारतीयों की संतान मान लिया जाए। उनके अनुसार अनेकों बार यु)रत जाट देश से बाहर यु) अभियानों पर गये और उनमें से बहुत से वहीं बस गये और उन्होंने वहां जाटों के नाम पर नगर बसाये। स्पेन में जाटा अथवा जटिया, स्वीडन में जान्टेडल, पर्सिया में जाटिंगन, ग्रीस में जाट देश, डाल्मेटिया में जटन, जर्मनी में जैथीिंग्लयन्स और डैनमार्क जिसका दूसरा नाम जट लैण्ड है, आदि देशों में जाटों ने अपनी विजय पताका फ़हारायी और वहां अपनी कालोनियां बसायी थीं।

जाट शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई

जाट शब्द की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न विद्वानों के विभिन्न मत हैं। अधिाकांश विद्वानों का मत है कि कि जाट शब्द का शाब्दिक अर्थ है बिखरी शक्तियों को एकत्र करने वाला। अर्थात् जहां बिखरी शक्तियों का समावेश हो जाये ऐसे संघ अथवा जाति को ही जाट कहा जाता है। यही पाणिनी की अष्टाध्यायी कहती है। केवल दो अक्षरों ‘ज’ और ‘ट’ के युग्म से बना ‘जाट’ शब्द कैसा उत्तम व भावपूर्ण अर्थ रखता है, यह इसकी विलक्षणता का ही प्रतीक है। सतलुज नदी जो पंजाब प्रदेश में बहती है, के पश्चिमी भू-भाग में जिस क्ष=ीय जाति को जट कहते हैं, उसी सतलुज नदी के पूर्वी व दक्षिणी भू-भाग जिसमें कि वर्तमान में राजस्थान प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश का पश्चिमी भू-भाग आता है, में इस जाति को जाट नाम से सम्बोधिात किया जाता है।