औरंगजेब की कट्टरता पर भारी राव हरी राय की बहादुरी

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सम्वत् 1727 में औरंगजेब ने धोखे से अपने भाई-भतीजों की हत्या कर अपनी राह के सारे कांटे साफ कर इस्लाम के नाम पर तलवार उठायी और हिन्दुओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिये। कट्टर मुल्ला-मौलवी इस कथित धर्मयुद्ध में उसके साथ हो लिये। शामगढ़ के युद्ध में जिन लोगों ने उसके पिता और भाईयों का साथ दिया था, अब वह उन्हें एक-एक कर सबक सिखा रहा था। इस क्रम में छत्रपति शिवाजी के पुत्र शाहू जी, ओरछा नरेश पहाड़ सिंह, चम्पतराय बुन्देला, गुरु गोविन्द सिंह के दो अबोध पुत्र जोरावर सिंह और फतह सिंह व न जाने कौन-कौन उसके प्रतिशोध के शिकार हुए।

उन सबसे निपटने के बाद औरंगजेब हरियाणा सर्वखाप पंचायत पर झपटा। इसका कारण यह था कि औरंगजेब-दारा शिकोह युद्ध में सर्वखाप पंचायत ने दारा शिकोह का साथ दिया था। क्योंकि सर्वखाप पंचायत की दृष्टि में दारा शिकोह एक धर्मनिष्ठ और सच्चा इन्सान था, अतः हरियाणा सर्वखाप पंचायत ने औरंगजेब और दारा शिकोह के बीच हुए युद्ध के समय में दारा शिकोह का साथ देना उचित समझा था। दुर्योग से दारा शिकोह को औरंगजेब ने छल से मार डाला था और वह हिंदुस्तान का सम्राट बन चुका था।

यूं तो हरियाणा सर्वखाप पंचायत में सभी जातियों का प्रतिनिधित्व था, लेकिन औरंगजेब की निगाहों में सबसे अधिक जाट ही चुभते थे। क्योंकि वह जानता था कि सर्वखाप पंचायत में जाटों का दबदबा है और उसमें वही निर्णय लिये जाते हैं जो जाटों को पसंद होते हैं। इसलिए उसके विरुद्ध जाकर दारा शिकोह को सहायता देने का ऐलान भी जाटों का ही था। अतः अब हरियाणा सर्वखाप पंचायत के जाटों को, विशेषकर हरियाणा सर्वखाप पंचायत के मुख्यालय के जाटों को सबसे पहलेे नेस्तनाबूद करने का उसने निर्णय लिया।

औरंगजेब जाटों से वैसे भी बुरी तरह से खफा था। सर्वखाप पंचायत के एक जाट वीर तिलपत के गोकुला सिंह ने औरंगजेब को कई सालों तक नाकों चने चबवाये थे। वह गोकुला जाट ही था जिसने अकेले होते हुए भी, उसकी लाखों की संख्या वाली सेना के होते हुए भी पूरे ब्रज क्षेत्र में उसकी सेनाओं के लिए आतंक का पर्याय बन गया था और उसने उसके पचास हजार सैनिकों को छापामार युद्धों के दौरान मार डाला था।
इन सब कारणों से औरंगजेब जाटों और उनकी सर्वखाप पंचायत से अत्यंत ही खफा था और उन्हें सबक सिखाना चाहता था। लेकिन वह यह भी अच्छी तरह से जानता था कि सर्वखाप पंचायत के पास अनेेकों बहादुर मल्ल और विकट लड़ाके हैं, जिनसे वह तो क्या कोई भी आसानी से पार नही पा सकता था। जब अकेले गोकुला से ही उसकी भारी सेना सालों तक पार नहीं पा सकी थी, तो खुल्लमखुल्ला युद्ध में वह जाटों से पार नहीं पा सकता था। उसे पता था कि सर्वखाप के वीरों के इसी विशेष गुण के कारण ही उसके सारे पूर्वज यानि हिंदुस्तान में मुगल वंश के संस्थापक बादशाह बाबर और उसके बाद के सभी बादशाह सर्वखाप पंचायत व क्षेत्र के जाटों से गहरे रिश्ते बनाकर रखते थे। यहां तक कि वे प्रायः सर्वखाप पंचायत में जाकर शामिल भी होते रहते थें और सर्वखाप पंचायत को वजीफे भी भेजते रहते थे।
औरंगजेब ने तब सोच-समझकर एक कुटिल चाल चली। उसने सर्वखाप पंचायत के नाम एक निमंत्रण पत्र भेजा। इस निमंत्रण पत्र में सर्वखाप के सभी मुख्य पंचों को किसी महत्वपूर्ण मसले पर अपनी राय देने के लिए औरंगजेब द्वारा ससम्मान दिल्ली आमंत्रित किया गया था।
इससे पूर्व बादशाह बाबर, अकबर और जहांगीर के दरबार से भी इसी प्रकार के निमंत्रण पत्र सर्वखाप पंचायत के सम्मनित पंचों को मिलते रहे थे। ऐसे निमंत्रणों पर इस पंचायत के प्रमुख पंच राजदरबारों में जाते रहते थे। इस कारण किसी को भी औरंगजेब के उस निमंत्रण पत्र से किसी प्रकार के षड्यन्त्र की बू महसूस नहीं हुई। सर्वखाप पंचायत के 21 प्रमुख पंचों का एक दल बादशाह औरंगजेब से मिलने के लिए दिल्ली के लिए रवाना हो गया। उनके साथ कुछ की स्त्रियां भी थीं। ये सभी व्यक्ति मुजफ्फरनगर के गांव सौरम के निवासी थे। इनमें सर्वखाप पंचायत के मुखिया राव हरिराय, धूम सिंह, फूल सिंह, शीशराम, हरदेव सिंह, रामलाल, बलिराम, लालचंद, हरिपाल, नबल सिंह, गंगाराम, चंदूराम, हरसहाय, नेतराम, हरबंश, मनसुख, मूलचंद, हरदेवा, रामनारायण, भोला और हरिद्वारी आदि में 11 जाट, 3 राजपूत, एक ब्राह्मण, एक वैश्य, एक त्यागी, एक गूजर, एक सैनी, एक रवा और एक रोड़ा था।

जैसे ही सर्वखाप पंचायत का यह दिल्ली पहुंचा, इस दल को गिरफ्तार कर लिया गया। सर्वखाप पंचायत के सदस्य बादशाह द्वारा इस तरह से धोखे से कैद किये जाने पर हैरान रह गये।
औरंगजेब ने सर्वखाप पंचायत के जाट नेता राव हरिराय पर उसके भाई दारा और उसके पिता शाहजहां का साथ देने का आरोप लगाते हुए उस पर इस्लाम ग्रहण करने का दबाव डाला। लेकिन राव हरिराय ने उसका दबाव नहीं माना और इस्लाम ग्रहण करने से साफ इंकार कर दिया। राव हरिराय ने कहा, ‘इस्लाम में क्या खूबी है जो मैं अपना धर्म छोड़कर उसे अपनाउफं?’
औरंगजेब-‘इस्लाम खुदा का दीन है और सब मजहबों से बढ़कर है।’
राव हरिराय-‘क्या खुदा भी गलती करता है कि जो सबको अपने दीन में पैदा नहीं करता? यदि खुदा की निगाह में केवल दीन ही सबसे अच्छा मजहब है, तो वह बाकी लोगों को दूसरे मजहबों में क्यों पैदा होने देता है? अगर वह लोगों को दूसरे धर्मों में पैदा होने से नहींे रोक सकता, तो हम निर्दोष हैं।’
औरंगजेब-‘खुदा कभी गलती नहीं करता।’
राव हरिराय-‘अगर तुम्हारा खुदा सच्चा है, तो तुम झूठे हो। तुम्हारे खुदा या तुममें से एक जरूर झूठा है। यह दीन खुदा का दीन नहीं है, यह तेरा दीन है और मैं ऐसे दीन को कतई भी मानने को तैयार नहीं हूं।’
औरंगजेब-‘मैं खुदा और पैगम्बर के हुक्म को मानता हूं, दूसरे को नहीं। कुरान शरीफ खुदा की किताब है, वही सच है, बाकी सब झूठ है।’
राव हरिराय-‘मैंने कुरान को पढ़ा हैै। उसमें कहीं भी यह नहीं लिखा कि बाप को कैद करो, सल्तनत पाने के लिए भाईयों व भतीजों का कत्ल कर दो। तूने झूठ और फरेब का सहारा लेकर फकीरी की जगह बादशाहत ले ली। तूने अपने बाप शाहजहां की आजादी छीन उसे पानी की एक-एक बंूद के लिए तड़पा दिया। क्या यही खुदा और रसूल का हुक्म था? तू खुद को गाजी कहता है, लेकिन जनता की निगाहों में तू जालिम है। तूने हमें धोखे से कैद कर लिया। हिम्मत है तो दरबार से बाहर दो-दो हाथ कर। नतीजा सामने आ जायेगा।’
औरंगजेब-‘तुम सब मेरे पिंजड़े में बंद हो। चाहे जितना चीख लो, यहां से निकल नहीं सकते। यहां से निकलने के दो ही रास्ते हैं। इस्लाम या मौत। एक रास्ते को चुनना ही पड़ेगा।’
राव हरिराय-‘आत्मा अजर, अमर, अविनाशी है। इस शरीर से हटते ही यह किसी दूसरे शरीर में चली जायेगी। मैं तुझे ललकारता हूं। तू मर्दाें की तरह मैदान में आकर वीरों की तरह मुझ से युद्ध कर, तभी मैं तुझे वीर समझूंगा। नहीं तो मैं तुझे कुत्ते के समान नीच कहूंगा।’

औरंगजेब राव हरिराय की बात सुनकर तिलमिला उठा। उसने आदेश दिया, ‘सर्वखाप के सभी पंचों को चांदनी चैक के मैदान में ले जाकर फांसी पर लटका दिया जाए।’
उस समय दरबार में सूफी संत पीर नजफ अली भी मौजूद थे। वे राव हरिराय के परम मित्रों में से थे। उन्होंने बादशाह का यह आदेश सुना तो तड़प कर बोले, ‘ओ बादशाह, तू खुद को दीन का बंदा कहता है और काम कुफ़्र के करता है। इन निर्दोषों को छोड़ दे। धोखे से किसी को बुलाकर यूं मार डालना कहां की बहादुरी और गाजीपना है? इस तरह से तो दुनिया में सबका एक दूसरे का अकीदा ही उठ जायेगा।’
लेकिन सत्ता के मद में चूर औरंगजेब ने संत पीर अली को भी 100 कोड़े मारने और दरबार से उठाकर बाहर फेंक देने का हुक्म दिया। नजफ अली को 100 कोड़े मारकर दरबार से बाहर फेंक दिया गया। पीर नजफ अली कोड़े लगने से बेहोश हो गये।
कार्तिक शुक्ल दशमी संवत् 1727 के दिन सर्वखाप के सभी 21 पंचों को फांसी पर लटका दिया गया। उन में से किसी भी वीर ने बादशाह से रहम की भीख नहीं मांगीे। राजा जयसिंह के कहने और समझाने बुझाने पर उन वीरों के शवों को पंचों के साथ आये अन्य लोगों को ले जाने दिया। यमुना नदी के तट पर उन सभी शहीदों का अंतिम संस्कार किया गया। जिनकी स्त्रियां साथ आयी थीं, वे जौहर कर जलती चिताओं में कूदकर सती हो गयीं। जब नजफ अली को होश आया, तो उसे पता चला कि पंचों को फांसी दे दी गयी है और यमुना नदी पर उनका अंितम संस्कार किया जा रहा है। नजफ अली यमुना के घाट की ओर दौड़े। वहां जाकर उन्होंने अपने मित्र राव हरिराव की जलती चिता के सात चक्कर लगाये और चिता में कूदकर आत्म विसर्जन कर दिया।
ऐसे थे हरियाणा सर्वखाप पंचायत के वीर और ऐसा था उनका देश प्रेम और धर्म के प्रति प्यार। हरियाणा सर्वखाप पंचायत के इतिहास में ऐसी सैकड़ों घटनाएं दर्ज हैं जिनसे पता चलता है कि पंचायत के वीरों का किस प्रकार सदैव से ही प्रभाव रहा है।

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