मथुरा के जाटों का स्वाधीनता संग्राम में योगदान

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मथुरा के जाटों का स्वाधीनता संग्राम में योगदान

1857 की जनक्रांति में मथुरा का योगदान किसी क्षेत्र से भी कम नहीं है। मथुरा के जाटों ने क्रांति काल में जंगे आज़ादी में बहुत गर्मजोशी के साथ भाग लिया था. यही वह स्थान है जहां पर 1857 की क्रांति के सूत्रधारों ने क्रांति की परिकल्पना की थी। गुरु बिरजानन्द के निर्देशन में मथुरा के जंगलों में ही वह सभा हुई थी। जिसमें भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारी एकत्र हुए थे और क्रांति की पूरी रूपरेखा तैयार की थी। यूं तो उत्तर भारत की सभी जातियों के लोगों में क्रांति के प्रति बहुत ही उत्साह था, किंतु सबसे अधिक उत्साह या तो मुसलमानों में था या फिर जाटों मेें था। इसी उत्साह में भरकर मथुरा के दो जाट सरकारी कर्मचारी अपने प्राण और नौकरी हाथ पर लेकर क्रांति के संदेश रोटी और कमल के प्रतीक रूप में  4 रोटियां मथुरा के कलेक्टर थार्नहिल के कार्यालय में उसकी मेज पर रखकर आये थे। इस पर थार्नहिल बहुत ही क्रोधित हुआ था। किंतु वह यह पता नहीं लगा पाया कि ऐसा दुस्साहस किसने किया था।मेरठ और दिल्ली में हुई क्रांति का समाचार मथुरा पहुंचा, तो वहां के जाट लोग भी इस क्रांति में शामिल होने के लिए बेताब हो गये और निकल पड़े अंग्रेजों का सफाया करने के लिए। छाता की एक सराय में एक दिन कुछ देशभक्त क्रांतिकारी गुप्त सभा कर रहे थे। अंग्रेजों को किसी तरह से इस सभा का पता चल गया और उन्होेंने इस सराय को विस्फोट के द्वारा उड़ा दिया। इस सराय में सभा कर रहे 22 क्रांतिकारी मारे गये।
मथुरा में क्रांति की लपटों की आंच में अनेकों अंग्रेज झुलसकर अपने प्राण गंवा बैठे। शेष ने अपने बीबी बच्चे आगरा भेज दिये और स्वयं सुरक्षित स्थानों पर जा छिपे। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अंग्रेजों के विरुद्ध बराबर गुस्सा भरा था। अंग्रेजी सेना की देसी सैनिकों वाली 44वीं और 67वीं पलटन ने भी विद्रोह कर दिया था।

सादाबाद क्षेत्र के कुरसण्डा गांव का रहने वाला देवकरण जाट एक अत्यंत निर्भीक और साहसी था। वह अत्यंत प्रभावशाली किसान था। देवकरण जाट की भावना से ओतप्रोत था। उसने अपने लगभग 350 जाट क्रांतिकारी साथियों के साथ सादाबाद थाने को लूटकर ध्वस्त कर दिया था। उसने सादाबाद से ब्रिटिश सत्ता का जड़ से ही नामोनिशान मिटा दिया था। इस संघर्ष में उसके सात साथी मारे गये थे। देवकरण ने इस क्षेत्र में स्वाधीनता की घोषणा कर दी और मौलवी करामत अली को बादशाह के प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी।

इस क्षेत्र में विद्रोह को दबाने के लिए हाथरस के सामन्त सिंह ने घर का भेदी लंका ढाये की तर्ज पर अंग्रेजों को भरपूर सहयोग दिया, जिसके बल पर अंग्रेज सादाबाद से विद्रोह को दबाने में कामयाब हो सकेे।  सामन्त सिंह ने देवकरण व उसके साथी जालिम सिंह को गिरफ्तार करा दिया। अंग्रेजों ने क्षेत्र में विद्रोह को दबाने के लिए देवकरण से सहयोग मांगा। उन्होंने देवकरण के सामने शर्त रखी कि यदि वह आसपास के मुख्य गांवों और लोगों को लूटने में अंग्रेजों का सहयोग करे, तो उसे माफ किया जा सकता है अन्यथा उसे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।
देवकरण ने अंग्रेजों की इस पेशकश को मानने से स्पष्ट इंकार कर दिया। उसने स्पष्ट कह दिया, ‘मेरे जीते जी कोई भी इन गांवों और गांव वालों को नहीं लूट सकता।’ एक नवम्बर 1857 को देवकरण सिंह को फांसी दे दी गयी।
देवकरण के अलावा सूबेदार हीरा सिहं जाट  ने भी क्रांति की ज्वाला में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उसने भी अनेकों अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा।