गोकला जाट से भयाक्रांत औरंगजेब

Please Share!

गोकला जाट से भयाक्रांत औरंगजेब

मुग़ल काल के सबसे क्रूर बादशाह औरंगजेब ने जब हिन्दुओं पर असीमित अत्याचारों की श्रंखला बना रखी थी और कोई भी हिन्दू राजा इन अत्याचारों के खिलाफ बोलने का साहस नहीं कर पा रहा था, उस समय क्रांति दूत गोकला जाट का प्रादुर्भाव हुआ. गोकला जाट ने अपनी संगठन शक्ति के बल पर मुगल शहंशाह औरंगजेब के विरुद्ध जो धर्म युद्ध आरम्भ किया उसमें  औरंगजेब को बुरी तरह भयभीत कर दिया था. गोकला  ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपने पूरे परिवार को बलिदान कर दिया.

इतिहास ने गोकला जाट के बलिदान को भुला दिया

गोकुला ने हिन्दू धर्म के अस्तित्व की जो लड़ाई लड़ी, उसे सदियों तक भुलाना असंभव था. लेकिन हमारे देश की कलुषित राजनीति  ने गोकला जाट के बलिदान को पूरी तरह से भुला दिया, जबकि गोकला जाट ही इतिहास का वह पहला वीर पुरुष था जिसने शहंशाह औरंगगजेब को बताया था कि जाट कभी भी जुल्म को सहन नहीं कर सकता और प्रत्येक जुल्म करने वाले को उसकी ही भाषा में उत्तर देने की क्षमता रखता है. भले ही उसे किसी सत्ता का साथ मिले या नहीं.

समर्थ गुरु रामदास

गोकुल सिंह (जिसे आमतौर पर गोकला जाट  भी कहा जाता है) सन् 1660-70 के दशक के बीच तिलपत के इलाके में सबसे अधिक प्रभावशाली जमींदार बन चुका था। तिलपत के जमींदार के रूप में उसने मुगल सेना को ऐसे समय में चुनौती दी थी, जबकि यह अत्यंत ही जोखिम का काम था। उसमें संगठन, साहस दृढ़ता की जबरदस्त क्षमता थी।
मराठा सरदार शिवाजी के गुरू समर्थ गुरु रामदास मुगल आततायी औरंगगजेब के विरुद्ध सारे देश मं एक जनमत तैयार कने के लिए भ्रमण कर रहे थे। उन्होेंने मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, हरिद्वार, मेरठ और गढ़मुक्तेश्वर में लोगों को एकत्र कर हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु आत्मोसर्ग करने का आह्वान किया था। इसी क्रम में जब  गुरु समर्थ रामदास गढ़मुक्तेश्वर के कार्तिक स्नान मेले में आये हुए धर्म परायण लोगों को सम्बोधित कर रहे थे, तो उन्होंने सभा के बीच एक तलवार और पान का बीड़ा रखते हुए कहा घोषणा की, ‘‘मैं पूरे उत्तर भारत मेें घूम चुका, लेकिन मुझे कोई ऐसा वीर नहीं मिला, जो हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु अपने प्राणों’कोे बलिदान करने के लिए तत्पर हो। क्या इस सभा में कोई वीर ऐसा है जो हिन्दू धर्म और मातृभूमि की रक्षा के लिए सभा में रखे पान के बीड़ा को उठाकर चबाने का साहस कर सके।’’’

सर्मथ गुरु रामदास की इस घोषणा पर सभा में भारी चुप्पी छा गयी। किसी का साहस नहीं हुआ कि वह आगे बढ़कर पान के उस बीड़े को उठाकर चबा सके। सभा में चुप्पी छायी देख समर्थ गुरु रामदास ने कहा, ‘‘लगता है कि इस धरा ने भी कोई ऐसा वीर नहीं जन्मा जो धर्म की रक्षा कर सके।’’

वीर गोकला का ‘जय भावानी’ का रणघोष

समर्थ गुरु रामदास का यह कथन सुन एक व्यक्ति आगे बढ़ा। वह बहुत मजबूत कद काठी का लगभग 40 वर्ष का ऊंचे कद का अत्यन्त सुदर्शन व्यक्ति था। वह आदमी शेर जैसी हुंकार भरतेे हुए उछलकर लोगों की भीड़ से निकलकर सभा के बीच पहुंचा. उसने सभा के बीच रखा पान का बीड़ा उठाकर चबा लिया। इसके साथ ही उसने वहां रखी तलवार भी उठायी और पूरी शक्ति के साथ सभा में रणघोष किया, ‘‘जय भवानी।’’
इसके साथ ही सभा में उपस्थित सभी लोगों ने समवेत स्वरों में जयघोष किया ‘‘जय भवानी।’’

वह व्यक्ति मथुरा के निकट गांव सिनसिनी का निवासी गोकल राम जाट था। वह बहुत साहसी और बलवान था। वह जाट, गूजर और अहीर किसानों के संगठन का नेता था। वह अपने क्षेत्र मे मुस्लिम आतंकवाद का कट्टर शत्रु था। उसमें गजब की संगठन शक्ति थी।
गोकलराम ने सभा मेें घोषणा की, ‘‘मैं शपथ लेता हूं कि मैं धर्मांध राज्य सत्ता को उखाड़ कर ही दम लूंगा। जब तक मेरे शरीर में प्राण हैं, मैं मुस्लिम आतंकवाद को समूल नष्ट करने के लिए जी-जान एक करता रहूंगा।’’

गोकला का विद्रोह

गोकलराम ने अपने क्षेत्र में पहुंचते ही सबसे पहला काम यह किया कि उसने क्षेत्र के सभी किसानों का आह्वान करते हुए कहा, ‘‘हम आज से मुगल सत्ता का जुआ उतारकर फेंकते हैं। हम मुगलों के गुलाम नहीं हैं, भारत हमारा है, हम स्वतंत्र हैं। हम आज से ही मुगलों को मालगुजारी देना बंद करेंगे।”
शाही परगने में एक नामालूम से जमींदार के विद्रोह को सल्तनत के द्वारा किसी भी सूरत में सहन नहीें किया जा सकता था। यह एक अक्षम्य अपराध था। अतः औरंगजेब ने गोकला को दबाने के लिए दो शक्तिशाली सेनाएं भेजीं। पहली सेना रंददाज खां के नेतृत्व में  भेजी गयी और दूसरी सेना हसनअली खां के नेतृत्व में भेजी गयी। वे थोड़े-थोड़े समय के बाद मथुरा के फौजदार नियुक्त किये गये। पहले गोकुल सिंह से समझौते की बात चलायी गयी। उसे आदेश दिया गया कि यदि वह शाही इलाके में की गयी लूट के माल को वापिस लौटा दे, तो उसे क्षमा कर दिया जायेगा।  परंतु गोकलराम इन शर्ताें पर समझौता करने के लिए राजी नहीं हुआ। उसने स्पष्ट घोषणा कर दी कि वह हिन्दू हितों की रक्षा के लिए जंग करने खड़ा हुआ है, अब इस जंग में या तो वह बचेगा या औरंगजेब.

One thought on “गोकला जाट से भयाक्रांत औरंगजेब

Comments are closed.