सच्चे किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह

Please Share!

सच्चे किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह- आने वाले सैकड़ों वर्षां तक जब-जब भी किसानों के किसी सच्चे मसीहा, मजदूरों के सच्चे हितैषी, परम राष्ट्र भक्त और महान विचारक की बात चला करेगी, जब राजनीतिक कीचड़ में रहकर भी अपने चरित्र को एकदम बेदाग रखने वाले किसी राजनेता की बात चला करेगी, तो केवल दो व्यक्तियों का नाम सदियों तक ससम्मान लिया जायेगा। इनमें से एक नाम होगा स्व. लाल बहादुर शास्त्री का और दूसरा नाम होगा स्व. चौ. चरण सिंह का।

किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह का परिचय

श्री चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर सन् 1902 को जिला गाजियाबाद (उ.प्र.) के अन्तर्गत नूरपुर में चौ. मीरसिंह के घर माता श्रीमती नेत्री देवी की कोख से हुआ। चौ. मीरसिंह एक गरीब किसान थे जब बालक चरण सिंह की आयु मात्र 6 वर्ष की थी उसी समय आपके पिता चौ. मीरसिंह नूरपुर छोड़कर गाँव भूपगढ़ी जनपद मेरठ में जा बसे। चौ. मीरसिंह भूपगढ़ी में भी सुखी जीवन व्यतीत न कर सके। अतः उन्होंने उस गाँव को छोड़कर भदौला प्रस्थान कर दिया, जहाँ पर चौ. मीरसिंह के बड़े भाई लखपत सिंह, बूटा सिंह, गोपाल सिंह और रघुवीर सिंह रहते थे। चरण सिंह ने बचपन से ही किसानों की बबेसी, मुफलिसी तथा उन्हें तरह-तरह की परेशानियों से दो-चार होते देखते थे। गाँव में प्राथमिक स्कूल न होने के कारण समीपवर्ती ‘जानी’ गाँव के स्कूल में चरणसिंह को प्रवेश दिलाया गया।

 

चरण सिंह ने बाल्यकाल से लेकर युवावस्था तक अपने पिता के साथ मिट्टी में लिपटकर खेती का कार्य किया। वे प्रतिदिन स्कूल से घर लौटकर आते, तो पिता के साथ कृषि कार्य में हाथ बँटाते थे। इनके ताऊ चौ. लखपत सिंह इनसे बहुत प्रेम करते थे, अतः आगे की उच्च शिक्षा का प्रबन्ध इन्होंने ही किया। प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् उन्हें गवर्नमेंट कालेज मेरठ में प्रवेश दिलाया गया। इण्टर की परीक्षा पास करने के पश्चात् आपको आगरा कालेज में प्रवेश दिलाया गया। जहाँ से सन् 1923 में आपने बी.एस.सी. तथा सन् 1925 में इतिहास से एम. ए. करने के बाद आपने सन् 1926 में एल.एल.बी. की उपाधि ग्रहण की।

सन् 1928 ई. में चरण सिंह ने गाजियाबाद में वकालत करना प्रारंभ किया। उनका मुकदमा लड़ने का तरीका सब वकीलों से एकदम अलग था। वे किसानों के मुकदमे एवं लड़ाई-झगड़ों को आपसी बातचीत एवं पंचायती रीति-रिवाज के अनुसार तय कराने लगे। यह किसानों के हित में उनका अनूठा प्रयोग था। इससे उनकी वकालत तो नहीं चल सकी, किंतु वे गांवों में अत्यंत लोकप्रिय हो गये। उनकी छवि किसान और गरीब हितैषी की बन गयी। अब लोग उन्हें चौधरी चरण सिंह के नाम से पुकारने लगे थे। चौ. साहब की शादी 4 जून सन् 1925 को ग्राम कुण्डलगढ़ी जिला सोनीपत (हरियाणा) के चौ. गंगाराम की सुपुत्री मैट्रिक पास गायत्री देवी के साथ हुई। उन्होंने एक पुत्र अजित सिंह व पाँच कन्याओं को जन्म दिया।

चौ. साहब कट्टर आर्य समाजी थे। वह साम्राज्यवादी ताकतों और क्रांतिकारी विचारधारा वाले लोगों के बीच द्वन्द्व का काल था। भारतीय जनता में अंग्रेजों के विरुद्ध लावा उभरता जा रहा था। ऐसे में श्री चरण सिंह के दिल में भी देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना ने जोश मारा और वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये। वे सन् 1929 में गाजियाबाद नगर काँग्रेस कमेटी के सदस्य चुने गये। सन् 1930 ई. में नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण वे जेल गये।

वर्ष 1937 और 1939 में चौ. चरणसिंह को धारा सभा का सदस्य मनोनीत किया गया। सन् 1939 ई. में आप मेरठ आ गये। वे मेरठ जिला बोर्ड के उपाध्यक्ष तथा फिर बोर्ड के अध्यक्ष मनोनीत हुए। उन्होंने जिले भर की जीर्ण-शीर्ण पड़ी सड़कों की मरम्मत का कार्य प्राथमिकता के आधार पर कराया। वे सन् 1939 से सन् 1948 ई. तक मेरठ जिला काँग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष, महामंत्री एवं अध्यक्ष पदों पर रहे। यहीं से आप पं. गोविंद बल्लभ पंत के संपर्क में आये। वे द्वितीय महायुद्ध में मेरठ सत्याग्रह समिति के मंत्री चुने गये।

28 अक्तूबर 1940 ई. को चौ. चरणसिंह ने किसानों के साथ जिलाधीश निवास पर धरना दिया। जिसमें आपको डेढ़ वर्ष की सजा हुई। 1942 में हुए भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने के कारण उन्हें 8 अगस्त, 1942 को दो वर्ष की कैद हुई। उन्होंने गरीब किसानों के हित के लिए उस समय ‘द्दण विमोचक विधेयक’ नामक अत्यंत महत्वपूर्ण विधेयक पारित कराया, जिससे लगान देने में असमर्थ गरीब किसानों की जमीनें नीलाम होने से बच गयीं। किसान उन्हें भगवान के रूप में मानने लगे। इसी वर्ष चौ. चरणसिंह ने एक लेख लिखकर मांग की कि किसान-पुत्रों को सरकारी नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए। उन्होंने इस प्रस्ताव को कांग्रेस दल की बैठकां में भी रखा था, लेकिन तथाकथित शहरी ‘राष्ट्रवादियों’ के प्रबल विरोध के कारण इस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिली।

उ. प्र. के किसानों को इजाफा लगान तथा बेदखली के अभिशाप से मुक्त करने के लिए उन्होंने भरसक प्रयास किया, किंतु शहरी मनोवृत्ति के लोगों की अधिकता के कारण वे इसे पारित न करा सके। स्वाधीनता के पश्चात् उ. प्र. शासन में पहली बार मंत्री बनते ही उन्होंने सूबे में जमींदारी उन्मूलन एक्ट पास कराया।

 

इसके बाद चौ. चरणसिंह ने प्रदेश में चकबंदी और फिर भूमि सुधार के कई कार्यक्रम लागू किये। इन कार्यक्रमों के लागू होने से प्रदेश के किसानों की काया पलट ही हो गयी। उनकी आर्थिक नीतियां ग्रामोन्मुखी थीं। उनका आदर्श वाक्य थाः ‘देश की खुशहाली खेतों की हरियाली’। वह देश के प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने देश में ग्रामीण पुनरुत्थान विभाग का गठन करने के साथ नाबार्ड बैंक की स्थापना की।

चौ. चरणसिंह ने छुआछूत को दूर करने के लिए भी बहुत कार्य किया। चौ. साहब अपनी लगनशीलता एवं कार्यकुशलता के कारण छपरौली विधानसभा क्षेत्र से सन् 1936, 46, 52, 57, 62, 67, 68 एवं 1974 में लगातार विधायक चुने गये। सन् 1977 ई. में प्रथम बार बागपत लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गये और मृत्यु पर्यन्त इसी क्षेत्र से सांसद रहे।

चौ. चरणसिंह सन् 1946 के चुनाव के बाद पं. गोविन्द बल्लभ पंत की प्रांतीय सरकार में संसदीय सचिव नियुक्त हुए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद चौ. चरणसिंह उ. प्र. मंत्री मण्डल में कई विभागें के मंत्री व दो बार मुख्यमंत्री रहे। इन पदों पर रहते हुए उन्होंने लोकहित के ऐसे अनेकों कार्य किये, जिन्होंने प्रदेश की जनता का कायाकल्प ही कर डाला।

जनता पार्टी की केन्द्र में सरकार बनने पर वे सन् पहले गृहमंत्री, तत्पश्चात् वित्त एवं वरिष्ठ उप प्रधानमंत्री बनाया गया। बाद में आप प्रधानमंत्री के पद पर विराजमान हुए।

चौधरी चरण सिंह के एकमात्र पुत्र चौ. अजीत सिंह हैं जिन्होंने इन्जीनियरिंग की उपाधि ग्रहण कर अमेरिका में नौकरी प्रारंभ कर दी थी। चौ. साहब के अधिक बीमार होने पर नौकरी से त्यागपत्र देकर वह भारत आ गये और लोकदल पार्टी के महासचिव नियुक्त हुए। चौ. साहब लोकदल के अध्यक्ष एवं हेमवती नंदन बहुगुणा उपाध्यक्ष थे, बीमारी के समय अजीत सिंह को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया।

दिसम्बर सन् 1985 में चौधरी साहब पक्षाघात (लकवा) के शिकार हुए। लगभग डेढ़ वर्ष तक लगातार बीमार रहने के पश्चात् 29 मई सन् 1987 ई. को किसानों के मसीहा एवं महान दार्शनिक का देहावसान हो गया। आपकी मृत्यु की सूचना मिलते ही तीन दिन तक शोक में राष्ट्रीय झंडे झुके रहे। आपका दाह संस्कार 31 मई को राष्ट्रीय सम्मान के साथ राजघाट के निकट किया गया, जिसका नाम वर्तमान में ‘किसान घाट’ रखा गया है।

 

चौ. चरण सिंह एक सुलझे हुए गम्भीर लेखक भी थे। उन्होंने अपने जीवन में अनेकों सारगर्भित लेख लिखे, जिनके माध्यम से आज भी कई गम्भीर समस्याओं से निजात पाया जा सकता है। उन्होंने आर्थिक सुधारांं पर ‘इकॉनामिक नाइटमेयर ऑफ इण्डियाः इट्ज कॉजेज एण्ड क्योर’ (भारत की भयावह आर्थिक स्थितिः कारण और उपचार) पुस्तक लिखी थी। यह पुस्तक भारत ही नहीं विदेशों तक में अत्यंत चर्चित हुई थी। यह पुस्तक अमेरिका के प्रसिद्ध आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाती है। लेकिन खेद का विषय है कि भारत के किसी भी विश्वविद्यालय में इस पुस्तक को नहीं पढ़ाया जाता।

किसान मसीहा चौ. चरणसिंह का विचार था कि भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है, अतः यहां पर ऐसे कुटीर उद्योग स्थापित किये जाएं जिनसे अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मिल सके। चौ. चरणसिंह का कहना था कि देश की गरीबी को कम करने के लिए आवश्यक है कि किसानों की आर्थिक स्थिति सबसे पहले सुदृढ़ हो। किसान की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए वे एक ही मंत्र पर जोर देते थे कि खेती में प्रति एकड़ उत्पादन में वृद्धि हो, लेकिन खेती करने वाले किसानों की संख्या में प्रति एकड़ कमी आए।

चौ. साहब अत्यंत ही स्पष्टवादी थे। उनकी स्पष्टवादिता से उनके प्रबल विरोधी भी भय खाते थे। जो उन्हें अच्छा लगता, उसे बिना किसी लाग लपेट के स्वीकार कर लेते थे, तथा जो बुरा लगता, उसकी भर्त्सना या निंदा किये बिना न रहते। राष्ट्रीय स्तर के किसी भी राजनेता का प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के सामने बोलने का साहस न होता था। केवल चौ. चरणसिंह ही एक ऐसे व्यक्ति थे, जो जब भी आवश्यकता हुई, नेहरु के विरुद्ध खुलकर बोले। वे एक प्रखर वक्ता थे। जब वह सदन में बोलते, तो सदन के सभी सदस्य उनका भाषण सुनने के लिए शांत बैठे रहते थे। उनके भाषण के समय कोई शोर शराबा नहीं होता था।

चरित्र और संयम चौधरी साहब की सबसे बड़ी पूंजी थी। वे अत्यंत ही सख्त प्रशासक थे। जिस दिन यह खबर छपती कि उ. प्र. में चरणसिंह मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं, उसी दिन सरकारी दफ्रतरों में रिश्वतखोरी व दफ्तरी बाबुओं का देर से दफ्तर आना स्वयं ही बंद हो जाता।

चौधरी साहब सिद्धांतवादी अधिक और राजनीतिज्ञ कम थे। कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि वह राजनीतिज्ञ थे ही नहीं। इन लोगों की यह बात काफी सीमा तक सच भी लगती है। क्योंकि यदि वह राजनीतिज्ञ होते, तो दो बार उ. प्र. जैसे बड़े प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद वह मुख्यमंत्री पद को इतनी आसानी से न छोड़ते। यदि वह सिद्धांतवादी न होकर राजनीतिज्ञ होते, तो वह प्रधानमंत्री बनने के बाद आसानी से सत्ता के भूखे सांसदों को अपने पक्ष में कर काफी लम्बे समय तक प्रधानमंत्री पद पर बने रह सकते थे।

 

राजनीतिज्ञ पहले अपना हित देखता है, राष्ट्र अथवा समाज हित उसके सामने गौण होता है। सिद्धांतवादी व्यक्ति सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व होम कर देता है। चौ. चरणसिंह वास्तव में सिद्धांतों वाले व्यक्ति थे। वे सदा अपने सिद्धांतों के लिए जिये और मृत्युपर्यंत उन सिद्धांतां पर अमल करते रहे। उन्होंने अपने सिद्धांतों के लिए एक बार नहीं, कई बार सत्ता को ठुकराया।

जब कभी छात्र समाज में व्याप्त अनुशासनहीनता को बिना लाठी-गोली के मिटाने का सवाल उठेगा, जब कभी सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों से रिश्वतखोरी मिटाने की बात चलेगी, जब कभी प्रशासन में कमखर्ची और कुशलता लाने की बात उठेगी, जब कभी सरकार गम्भीरता से देश से गरीबी और बेकारी मिटाने की बात पर बल देगी, तब निश्चय ही इनके स्थायी हल के लिए चौ. चरणसिंह के व्यक्तित्व, चिंतन की दिशा और नीति की ओर ही देखना पड़ेगा। इसके बिना समस्याओं के समाधान नहीं खोजे जा सकेंगे। चौ. चरणसिंह को इस सम्बन्ध में सदा याद किया जायेगा कि एक गरीब किसान के बेटे ने उस वर्ग को वाणी दी, जो सदियों से सर्वहारा और पददलित था। चौ. चरणसिंह आदर्श पुरुष थे। वह जब तक जिये, उद्देश्यों तथा सिद्धांतों के लिए जिये। उन्होंने कभी सिद्धांत के लिए समझौता नहीं किया। वह गंगा की तरह पवित्र, हिमालय की तरह अडिग तथा इस्पात की तरह दृढ़ थे।

राजनीति में चौधरी साहब की गिनती चोटी के नेताओं में होती थी। जनता पार्टी के निर्माण में उन्होंने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। जनता पार्टी का नाम, चुनाव चिन्ह तथा घोषणा पत्र उन्हीं के द्वारा दिया गया था। चौ. चरणसिंह चाहे प्रदेश के मंत्री रहे हों, मुख्यमंत्री रहे हों या देश के गृह मंत्री अथवा प्रधानमंत्री, उनका रहन-सहन व भोजन अत्यंत ही सादा था। उनके खाने में चपाती, दाल और एक सब्जी वाला खाना होता था। घर पर डैस्क बिछाकर दरी पर बैठकर लिखना- पढ़ना और सादी खादी के वस्त्र पहनना उनकी जीवन शैली में सम्मिलत था। उनके कमरे में स्वामी दयानन्द, गांधी और सरदार पटेल की तस्वीरें लटकी मिलती थीं। इन तस्वीरों के अतिरिक्त उनके कमरे की दीवारों पर और कुछ भी नहीं होता था।

भारत के इतिहास में यह दूसरा उदाहरण था, कि मृत्यु के बाद चौधरी साहब के बैंक खाते से केई धन नहीं निकला। उन्होंने दो बार मुख्यमंत्री, केन्द्र सरकार में गृहमंत्री और प्रधानमंत्री बनने के उपरांत भी केई निजी सम्पत्ति नहीं बनायी। चौ. चरणसिंह का नाम भारतीय राजनीति के इतिहास में सदा एक धूमकेतु की तरह चमकता रहेगा। चौ. चरण सिंह जैसा ईमानदार राजनीतिज्ञ अब शायद भारत को कभी भी न मिल सके।

चौ. चरण सिंह के विषय में मेरठ के प्रसिद्ध ज्योतिषी पं. जगदीश गुरुजी एक संस्मरण सुनाया करत हैं। पंडित जी चौधरी साहब के गांव भदौला में ब्याहे थे, इसलिए उनका पहले से ही चौधरी साहब से परिचय था। जब चौधरी साहब भारत के गृह मंत्री थे, तो उन्होंने पंडित जी को एक दिन दिल्ली बुलाया और उन्हें लेकर अपनी तुगलक रोड स्थित कोठी के लान में जाकर बैठ गये और वे पंडित जी कुछ प्रश्न पूछने लगे।

पं. जगदीश शर्मा अभिभूत होकर बताते हैं कि चौधरी साहब ने उनसे पूरे दो घण्टे तक प्रश्न पूछे और उन प्रश्नों में एक भी प्रश्न उनका व्यक्तिगत प्रश्न नही था। उनके सारे प्रश्न ही देश से सम्बन्धित थे।

जब विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधान मंत्री थे, चौधरी साहब बीमार थे और अमेरिका में उपचार करा रहे थे। उसी समय विश्वनाथ प्रताप सिंह अमेरिका दौरे पर गये, तो चौधरी साहब को देखने अस्पताल जा पहुंचे। डाक्टरों ने उन्हें बोलने के लिए मना किया था फिर भी वे विश्वनाथ प्रताप सिंह से बोले, ‘मेरे देश का क्या होगा?’ और यह कहते हुए वे भावावेश में रो पड़े थे।