जाटों की संगठन शक्ति से डरता था औरंगजेब
औरंगजेब जानता था कि वह जाटों से खुलकर लड़ाई नहीं लड़ सकता था। ब्रज क्षेत्र के गोकुला जाट ने औरंगजेब को कई साल तक नाकों चने चबवाकर रखा था। वास्तव में तो वह जाटों की बढ़ती शक्ति से आतंकित था। गोकुला की हत्या कर देने के बाद वह देहली के चारों ओर के जाटों पर नकेल कसनी चाही। उसने सोच-समझकर एक कुटिल चाल चली। उसने सर्वखाप पंचायत के नाम एक निमंत्रण पत्र भेजा। इस निमंत्रण पत्र में औरंगजेब ने सर्वखाप के सभी मुख्य पंचों को किसी महत्वपूर्ण मसले पर अपनी राय देने के लिए औरंगजेब द्वारा ससम्मान दिल्ली आमंत्रित किया।
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अकबर और जहाँगीर भी सम्मान करते थे सर्वखाप पंचायत का
इससे पूर्व बादशाह बाबर, अकबर और जहांगीर के दरबार से भी इसी प्रकार के निमंत्रण पत्र सर्वखाप पंचायत के सम्मनित पंचों को मिलते रहे थे। ऐसे निमंत्रणों पर इस पंचायत के प्रमुख पंच राजदरबारों में जाते रहते थे।
औरंगजेब का जाट शक्ति को कुचलने का षड़यंत्र
इस कारण किसी को भी औरंगजेब के उस निमंत्रण पत्र से किसी प्रकार के षड्यन्त्र की बू महसूस नहीं हुई। सर्वखाप पंचायत के 21 प्रमुख पंचों का एक दल बादशाह औरंगजेब से मिलने के लिए दिल्ली के लिए रवाना हो गया। उनके साथ कुछ की स्त्रियां भी थीं।
ये सभी व्यक्ति मुजफ्फरनगर के गांव सौरम के निवासी थे। इनमें सर्वखाप पंचायत के मुखिया राव हरिराय, धूम सिंह, फूल सिंह, शीशराम, हरदेव सिंह, रामलाल, बलिराम, लालचंद, हरिपाल, नबल सिंह, गंगाराम, चंदूराम, हरसहाय, नेतराम, हरबंश, मनसुख, मूलचंद, हरदेवा, रामनारायण, भोला और हरिद्वारी आदि शामिल थे। इन लोगों में 11 जाट, 3 राजपूत, एक ब्राह्मण, एक वैश्य, एक त्यागी, एक गूजर, एक सैनी, एक रवा और एक रोड़ा था।
जैसे ही सर्वखाप पंचायत का यह दिल्ली पहुंचा, इस दल को गिरफ्तार कर लिया गया। सर्वखाप पंचायत के सदस्य बादशाह द्वारा इस तरह से धोखे से कैद किये जाने पर हैरान रह गये।
इस्लाम अपनाने के लिए डाला दबाव
औरंगजेब ने सर्वखाप पंचायत के जाट नेता राव हरिराय पर उसके भाई दारा और उसके पिता शाहजहां का साथ देने का आरोप लगाते हुए उस पर इस्लाम ग्रहण करने का दबाव डाला। लेकिन राव हरिराय ने उसका दबाव नहीं माना और इस्लाम ग्रहण करने से साफ इंकार कर दिया।
औरंगजेब और राव हरिराय में संवाद
राव हरिराय :- ‘इस्लाम में क्या खूबी है जो मैं अपना धर्म छोड़कर उसे अपनाऊं?’
औरंगजेब : -‘इस्लाम खुदा का दीन है और सब मजहबों से बढ़कर है।’
राव हरिराय : – ‘क्या खुदा भी गलती करता है कि जो सबको अपने दीन में पैदा नहीं करता? यदि खुदा की निगाह में केवल दीन ही सबसे अच्छा मजहब है, तो वह बाकी लोगों को दूसरे मजहबों में क्यों पैदा होने देता है? अगर वह लोगों को दूसरे धर्मों में पैदा होने से नहींे रोक सकता, तो हम निर्दोष हैं।’
औरंगजेब: -‘खुदा कभी गलती नहीं करता।’
राव हरिराय : – ‘अगर तुम्हारा खुदा सच्चा है, तो तुम झूठे हो। तुम्हारे खुदा या तुममें से एक जरूर झूठा है। यह दीन खुदा का दीन नहीं है, यह तेरा दीन है और मैं ऐसे दीन को कतई मानने को तैयार नहीं हूं। मैंने कुरान को पढ़ा हैै। उसमें कहीं भी यह नहीं लिखा कि बाप को कैद करो, सल्तनत पाने के लिए भाईयों व भतीजों का कत्ल कर दो। तूने झूठ और फरेब का सहारा लेकर फकीरी की जगह बादशाहत ले ली। तूने अपने बाप शाहजहां की आजादी छीन उसे पानी की एक-एक बूँद के लिए तड़पा दिया। क्या यही खुदा और रसूल का हुक्म था? तू खुद को गाजी कहता है, लेकिन जनता की निगाहों में तू जालिम है। तूने हमें धोखे से कैद कर लिया। हिम्मत है तो दरबार से बाहर दो-दो हाथ कर। नतीजा सामने आ जायेगा।’
संत पीर अली को लगवाये कोड़े
औरंगजेब राव हरिराय की बात सुनकर तिलमिला उठा। उसने आदेश दिया, ‘सर्वखाप के सभी पंचों को चांदनी चैक के मैदान में ले जाकर फांसी पर लटका दिया जाए।’ उस समय दरबार में सूफी संत पीर नजफ अली भी मौजूद थे। वे राव हरिराय के परम मित्रें में से थे। उन्होंने बादशाह का यह आदेश सुना तो तड़प कर बोले, ‘ओ बादशाह, तू खुद को दीन का बंदा कहता है और काम कुप्रफ के करता है। इन निर्दोशों को छोड़ दे। धोखे से किसी को बुलाकर यूं मार डालना कहां की बहादुरी और गाजीपना है? इस तरह से तो दुनिया में सबका एक दूसरे का अकीदा ही उठ जायेगा।’
लेकिन सत्ता के मद में चूर औरंगजेब ने संत पीर अली को भी 100 कोड़े मारने और दरबार से उठाकर बाहर फेंक देने का हुक्म दिया। नजफ अली को 100 कोड़े मारकर दरबार से बाहर फेंक दिया गया। पीर नजफ अली कोड़े लगने से बेहोश हो गये।
सर्वखाप पंचायत के 21 पंचों को फांसी
कार्तिक शुक्ल दशमी संवत् 1727 के दिन सर्वखाप के सभी 21 पंचों को फांसी पर लटका दिया गया। उन में से किसी भी वीर ने बादशाह से रहम की भीख नहीं मांगीे। राजा जयसिंह के कहने और समझाने बुझाने पर उन वीरों के शवों को पंचों के साथ आये अन्य लोगों को ले जाने दिया। यमुना नदी के तट पर उन सभी शहीदों का अंतिम संस्कार किया गया। जिनकी स्त्रियां साथ आयी थीं, वे जौहर कर जलती चिताओं में कूदकर सती हो गयीं।
जब नजफ अली को होश आया, तो उसे पता चला कि पंचों को फांसी दे दी गयी है और यमुना नदी पर उनका अन्तिम संस्कार किया जा रहा है। नजफ अली यमुना के घाट की ओर दौड़े। वहां जाकर उन्होंने अपने मित्र राव हरिराव की जलती चिता के सात चक्कर लगाये और चिता में कूदकर आत्म विसर्जन कर दिया।
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