महाराजा सूरजमल और अफगानी लुटेरा अहमदशाह अब्दाली

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भरतपुर नरेश महाराजा सूरजमल अपनी कूटनीति के लिए भी बहुत प्रसिद्ध थे.  अहमदशाह अब्दाली ने अफगानी लुटेरे नादिरशाह की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी के रूप में शासन की बागडोर संभाली। अहमदशाह अब्दाली ने अफगानिस्तान का शासक बनते ही सन् 1753 में भारत पर आक्रमण कर दिया। उसका अनुभव बताता था कि भारतवर्ष के राजा प्रायः एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए आपस में ही लड़ते-झगड़ते और टकराते रहते हैं और बाहरी आक्रमणों के समय कभी भी एकता का प्रदर्शन नहीं करते। इसीलिए बाहरी आक्रांता भारत में आकर भी आसानीसे से वापिस चले जाते हैं। उसका अनुभव यह भी बताता था कि अधिक से अधिक क्रूरता का प्रदर्शन करने वाला कोई भी व्यक्ति भारतवर्ष को आसानी से जीत सकता है।

क्रूरता के लिए कुख्यात था अहमदशाह अब्दाली

अहमदशाह अब्दाली ने अपने स्वामी के समय में भारत पर किये गये आक्रमणों में जितनी क्रूरता दिखाई थी, उसके कारण ही तमाम क्षेत्रों में उसका आतंक कायम हो गया था, जिसके चलते कई राजा तो उसका नाम सुनते ही उसके सामने आत्मसमर्पण कर देते थे। उसने क्रूरता की नीति को हर बार आजमाया था और हर बार उसकी यह नीति सफल रही थी। अब्दाली के भारत पर आक्रमण करने का समाचार पंजाब और राजस्थान में आग की तरह फैलता चला गया था। अब तक लोग उसके नाम से कांपने लगे थे। देखते ही देखते उसने पूरा पंजाब जीत लिया। और वह विजय दुंदुभी बजता हुआ दिल्ली की ओर बढ़ा। 27 जनवरी 1753 को अहमदशाह अब्दाली ने दिल्ली के बाहरी अंचल पर अधिकार कर लिया। विराट भारत के मुगल बादशाह शाह आलम ने अब्दाली से भयभीत होकर अहमदशाह के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया।

 दिल्ली में मचाई भयंकर लूट

29 जनवरी को शाह आलम और अब्दाली  का सम्मिलित सार्वजनिक दरबार लगा। मुगल दरबार में अब्दाली को पूरा राजकीय सम्मान दिया गया। उसे अनेकों बहुमूल्य कीमती उपहार, दास-दासियां, घोड़े, हाथी और ऊंटों की सौगात दी गयीं। बादशाह ने अब्दाली को आने राज सिंहासन पर बैठाया। अहमदशाह के नाम के सिक्के प्रचलित किये गये। लेकिन इन सबसे उसका मन नहीं भरा। और एक मामूली से बहाने से उसने अपने सैनिकों को दिल्ली में लूट करने की आज्ञा दे दी। उसकी सेना ने राजधानी में भयंकर खूनी उत्पात शुरू कर दिया। लेकिन आततायी अहमदशाह अब्दाली का दिल नहीं पसीजा और उसकी सेना पूरे एक माह तक दिल्ली में लूट और हत्याओं का भयंकर खेल खेलती रही।

दिल्ली के बाद भरतपुर पर लगाई नज़र

दिल्ली को पूरी तरह से निचोड़ लेने के बाद अब्दाली ने दिल्ली से प्रस्थान करने का निर्णय किया। उसका अगला लक्ष्य भरतपुुर सम्राट महाराजा सूरजमल था। अब्दाली को सूरजमल के धन की विशेष चाह थी। क्योंकि उसे पता चल चुका था कि उस समय हिंदुस्तान भर में सूरजमल के बराबर धन किसी राजा के पास न था। अब्दाली को विश्वास था कि भारत केू दूसरे राजाओं की भांति भरतपुर का वह राजा उसकी एक छोटी सी धम की से ही डर जायेगा और उसे इतना धन दे देगा कि उसे बाबर-बार इस तरह के युद्ध अभियानों पर जाने की आवश्यकता ही न रहेगी।

अहमदशाह अब्दाली नहीं पहचान सका महाराजा सूरजमल की ताकत को

22 फरवरी 1753 को दिल्ली को छोड़कर अहमदशाह अब्दाली जाट राजा सूरजमल से राज-कर वसूलने के लिए रवाना हुआ। उसने महाराजा सूरजमल को संदेश भिजवाया कि वह राज-कर देने के लिए उसके सामने हाजिर हो और उसके झण्डे के नीचे रहकर उसकी सेवा करे और मुगल सल्तनत के जिन इलाकों को उसने छीना है, उन्हें वापिस लौटा दे तथा दिल्ली दरबार के दुश्मनों को दिल्ली भेज दे।
उस समय अहमदशाह अब्दाली दिल्ली को जीतने के दर्प में इतना चूर था कि उसे लग रहा था कि अब जैसे सारा संसार उसके कदमों के नीचे आ गया है। उसको यह भी पूर्ण विश्वास था कि भारत के अन्य राजपूत राजाओं की भांति सूरजमल भी उससे बुरी तरह से भयाक्रांत होगा और उसके एक धमकी भरे पत्र को पाते ही नंगे पैर दौड़ता हुआ उसके सामने आ खड़ा होगा और उसके सामने नतमस्तक होता हुआ उसे मुंह मांगी दौलत दे देगा।

महाराजा सूरजमल की कूटनीति ने अहमदशाह को किया पस्त

लेकिन अब्दाली को पता ही नहीं था कि सूरजमल वह महान जाट नायक था जो स्वयं मेें एक पर्वत था जिससे टकराते हुए हवाएं भी कतराती थीं। अब्दाली को सूरजमल की शक्ति का पता ही नहीं था। सूरजमल ने अब्दाली के इस संदेश की कोई परवाह नहीं और अब्दाली को अत्यंन्त सधी हुई भाषा में एक पत्र लिखा। महाराजा सूरजमल द्वारा अब्दाली को लिखा पत्र विश्व के राजनीतिज्ञों द्वारा अब तक लिखे पत्रों में बहुत ही ऊंचा स्थान रखता है। उन विषम परिस्थितियों में मात्र गिनती के कुछ ही शब्दों में सूरजमल के द्वारा लिखा गया वह पत्र बताता है कि महाराजा सूरजमल को अपने बाहुबल और अपनी सेना पर कितना विश्वास था। उनके द्वारा लिखा वह पत्र संसार भर के कूटनीतिज्ञों के लिए ईष्र्या की बात हो सकती है।

महाराजा सूरजमल का अहमदशाह अब्दाली को कूटनीतिक उत्तर

महाराजा सूरजमल ने अपने उत्तर में लिखा था, ‘‘जब बड़े-बड़े जमींदार हुजूर की सेवा में हाजिर होंगे, तब यह दास भी शाही ड्योढ़ी का चुंबन करेगा। जिन्होंने मेरे पास शरण ली है, मैं उन्हें कैसे भेज सकता हूं।’’अहमदशाह को सपने में भी यह उम्मीद नहीं थी कि सूरजमल उसको इस प्रकार रूखा उत्तर देगा। उसके दर्प को बहुत ठेस पहुंची और उसने सूरजमल के इस उत्तर से चिढ़कर सूरजमल के निकटतम बल्लभगढ़ किले पर हमला कर दिया। बल्लभगढ़ का किला सूरजमल के साम्राज्य का सबसे कमजोर किला था और वहां सेना भी बहुत ही कम थी। अहमदशाह की नीयत को भांप कर समय रहते वहां से सब कुछ हटा लिया गया था। अब्दाली उस खाली पड़े किले को जीत कर बहुत खुश हुआ। उसे वहां से कुल बारह हजार रुपये की तुच्छ राशि, सोने-चांदी के कुछ बर्तन, चैदह घोड़े, ग्यारह ऊंट व कुछ अनाज ही हाथ लग सका।

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