‘आखा‘ गढ गोमुखी बाजी, माँ भई देख मुख राजी.
धन्य धन्य गंगिया माजी, जिन जायो सूरज मल गाजी.
भइयन को राख्यो राजी, चाकी चहुं दिस नौबत बाजी.‘
पिता का नाम था राजा बदन सिंह. महाराजा सूरजमल,जिनका नाम कुशल प्रशासक, दूरदर्शी और कूटनीति के धनियों में बड़े गुरुर के साथ लिया जाता है और लिया जाता रहेगा. वे किशोरावस्था से ही अपने व्यवहार और बहादुरी की वजह से ब्रज प्रदेश में सबकी आँख का तारा बन गये थे. सूरजमल ने मात्र 26 वर्ष की अल्प आयु में सन 1733 में भरतपुर रियासत की स्थापना की थी.
एक बार सूरजमल को युद्ध में दोनों हाथो में तलवार ले कर लड़ते देख राजपूत रानियों ने उनका परिचय पूछा तब सूर्यमल्ल मिश्र ने जवाब दिया-“नहीं जाटनी ने व्यर्थ सही प्रसव की पीर, जन्मा उसके गर्भ से सूरजमल सा वीर”
जब 1753 तक महाराजा सूरजमल ने दिल्ली और फिरोजशाह कोटला तक अपना अधिकार क्षेत्र बढ़ा लिया था. इस बात से नाराज होकर मराठों ने गाज़िउद्दीन के कहने पर भरतपुर पर चढ़ाई कर दी. उनकी सेना कई दिनों तक कुम्हेर के किले के बाहर पड़ी रही. इस हमले की कीमत उन्हें मराठा सरदार मल्हारराव के बेटे खांडेराव होल्कर की मौत के रूप में चुकानी पड़ी. कुछ समय बाद मराठों ने सूरजमल से सन्धि कर ली.
पानीपत के तीसरे युद्ध में जिस समय मराठों का सामना अहमदशाह अब्दाली के साथ हुआ उस समय मराठोंऔर सूरजमल के बीच मतभेद था परन्तु इसके उलट जब मराठों की हालत पस्त हुई तो सूरजमल ने अपनी उदारता का परिचय देते हुए घायल सैनिकों को खाने पीने की सामग्री व दवाइयां मोहैय्या कराईं.
25 दिसम्बर 1763 को नवाब नजीबुद्दौला के साथ हिंडन नदी के तट पर हुए युद्ध में सूरजमल वीरगति को प्राप्त हुए. तभी से उस दिन को महाराजा सूरजमल बलिदान दिवस के रूप में भी मनाते हैं. उनकी वीरता, साहस और पराक्रम का वर्णन सूदन कवि ने ‘सुजान चरित्र’ नामक रचना में किया है. इतिहास में महाराजा सूरजमल का नाम बड़े आदर से लिया जाता है और भविष्य में भी उसी आदर के साथ लिया जाता रहेगा.