संसार के सर्वश्रेष्ठ योद्धा महाराजा सूरजमल | maharaja surajmal ki veer gatha

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महाराजा सूरजमल की वीरगाथा maharaja surajmal ki veer gatha

महाराजा सूरजमल ऐसे महान योद्धा थे जिन्होंने अपने जीवन में 80 छोटे-बड़े युद्ध लड़े और प्रत्येक युद्ध में उन्होंने विजयश्री हासिल की। उन्होंने बिना सेना के अकेले भी कई युद्ध लड़े और हरेक युद्ध में विजेता रहे।

जयपुर युद्ध में महाराजा सूरजमल ने हराया सात सेनापतियों को

महाराजा सूरजमल ने अपने विशेष प्रशिक्षित सैनिकों के बल पर जयपुर के राजा मानसिंह के बड़े पुत्र ईश्वरी सिंह की सहायता हेतु लड़े गये एक युद्ध में मराठा सेना सहित राजस्थान के छह राज्यों की साढ़े तीन लाख सैनिकों वाली संयुक्त सेना के सात सेनापतियों को एक ही समय परास्त किया था। उल्लेखनीय है कि उस समय सूरजमल के साथ केवल 12 हजार प्रशिक्षित सैनिक थे। यह विश्व इतिहास का अकेला ऐसा युद्ध था, जिसमें किसी एक छोटी सेना और अकेले सूरमा ने सात-सात राज्यों की विराट सेनाओं और प्रसिद्ध सेनापतियों को एक समय और एक ही युद्ध में हराया हो।

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सैनिकों के साथ युद्धाभ्यास करते थे महाराजा सूरजमल

सूरजमल नित्य प्रति सूर्योदय से पूर्व मैदान में अश्वारोहियों के साथ सैनिक-शिक्षा के लिए सम्मिलित होते थे और उनके साथ बन्दूक और भाले, बर्छी के करतब किया करते थे। घोड़े की पीठ से बन्दूक चलाना फिर घोड़े की पीठ की आड़ में झुककर बन्दूक भरना और पुनः चलाना, उनके दैनिक पसंदीदा करतब थे। बारह हजार घुड़सवारों के साथ वह नित्य प्रति इस शिक्षा में निपुण हो गये थे। उनके साथी घुड़सवार इतने भयंकर निशानेबाज हो गये थे कि उनका सामने भारत की कोई सेना मैदान में नहीं ठहर सकती थी। उसने बड़ी-बड़ी लड़ाईयां अपने इन्हीं सैनिकों के बल पर जीत ली थीं।

शत्रुओं से भी प्रेम भाव रखते थे महाराजा सूरजमल

महाराजा सूरजमल इतने लोकप्रिय तथा बात के धनी शासक थे कि शत्रु भी उन पर विश्वास करते थे। सूरजमल का कट्टटर शत्रु इमाद-उल-मुल्क अब्दाली के भय के कारण, देहली को छोड़कर सूरजमल के दरबार में आ गया था। सूरजमल ने उसको पूर्ण संरक्षण दिया था जबकि उसने इससे पूर्व सूरजमल का सर्वनाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन सूरजमल ने विपत्ति में उसकी रक्षा की और उसे सम्मानपूर्वक भरतपुर के किले में उसी भांति रखा, जैसे एक सेवक स्वामी को रखता है।

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महान योद्धा के सारे गुण थे महाराजा सूरजमल में

महाराजा सूरजमल का कद ठिगना और शरीर तगड़ा था। उनका रंग सांवला था और वह बहुत मोटे थे। उनकी आंखें बड़ी चमकीली थीं। वह बड़ी-बड़़ी गलमुच्छें रखते थे जो उनके चेहरे पर बहुत अधिक फबती थीं। उनके व्यवहार से तो गर्मी प्रकट नहीं होती थी, परंतु शरीर पर तेज दमकता था। उनके व्यवहार में बड़ी मृदुलता और मधुरता थी। उन्होंने बीस वर्ष तक जाट राज्य का उपभोग किया, पहले वृद्ध और निर्बल बदन सिंह के प्रतिनिधि के रूप में और फिर स्वयं नरेश के रूप में।

सादगी पसंद थे महाराजा सूरजमल

सम्राट सूरजमल इतने सादगी पसंद थे कि अपार सम्पत्ति और सैनिक-शक्ति का स्वामी होते हुए भी वे साधारण पुरुषों के साथ भी प्रेमपूर्वक मिलते थे और जहां तक बन पड़ता वह प्रत्येक व्यक्ति के कष्ट को दूर करने का प्रयत्न करते थे। वह एक किसान के घर मंे पैदा हुए थे, किंतु वह सक्षम राजा की भांति पुरुषों के असली गुणों की परीक्षा करने की क्षमता रखते थे और उनका यथोचित आदर भी करते थे। राजाओं की भांति ठाट-बाट से रहना उन्हें पसंद न था। वह स्वयं साधारण कपड़े पहनते थे और अपनी ब्रजभाषा ही बोलते थे। किताबी योग्यता उनमें नहीं थी।

महाराजा सूरजमल अपने पीछे पांच पुत्र छोड़ गये। नाहर सिंह जिसे वह अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे, जाट पत्नी से उत्पन्न हुआ था, जबकि जवाहर सिंह और रतन सिंह गोरी जात की स्त्री से पैदा हुए थे, चौथा नवलसिंह और पांचवां रनजीत सिंह था।